केरल सिंह | Keral Singh

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Book Image : केरल सिंह  - Keral Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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11 कप्पन कृष्ण मेनवनका 'केरलवर्मा पष्‌श्शि राजा' नामक गद्य-नाटक ही इनके संबंधर्म रचित पहला मलयाल-ग्रंथ है. यह वीररस-प्रधान नाटक महाराजाके स्वभाव-माहास्म्य, ग्रादर्श-महत्त्व तथा वीथं-पराक्रमको पर्याप्त रूपमें व्यकत करता है. श्री के० सुकुमारन्‌ बी० ए० ने 'জল- रंजिनी' नामक मासिक पत्रिकामोें महाराजाकी जीवनीपर 'पष॒श्शि राजा' शीपंकसे दो लेख प्रकाशित कराये थे, ये लेख मुख्यतः: मिस्टर लोगनकी 'मलाबार मन्युएल' के श्राधारपर लिखे गए थे. फिर भी इनसे महाराजा- के जीवनकी मुख्य घटनाओंकी जानकारी मिलती है. इस “'लोगन मेन्युएल' ओर वेलिगटनके खरीतों (वेलिगटन-डिसपेचेज) मं पषरिश राजाके सबधमे बहुत-सी जानकारी उपलन्ध है. 'वलिगटन डिसपैदेज' नामकं पुस्तकके पषुदिश राजा-संबंधी कु अंश इस पुस्तकके ग्रन्तमे परिशिष्टके रूपमे दे दिये गए हू. प्र॑थकर््ता साधारणतः नायकके गृणोको स्पष्ट करनेके लिए प्रतिनायकपर दोषा- रोपण किया करते हं. परिशिष्टमे स्पष्ट हो जायगा कि मेने इस मार्ग का ग्रवलम्बन नहीं किया है. श्री टी० के० कृष्ण मेनवनने जिसको वपरिश' बताया है उस 'पषरिश' नामके बारेमं भी दो शब्द कह देना आवश्यक है. केरलवर्माके पषरिडश राजा লালন विख्यात होनेका कारण उनका 'ঘন্বহিহা-হাজ- मंदिर में रहना दै. कोट्टयं राज्यके बड़े राजा ये कभी नहीं थे. कोट्टयं- राजवंशकी एक शाखा पष्‌श्शिमें रहती थी. पषश्शि दुगे और राज-मंदिर 'माट्टन्न्र' से चार मील दक्षिए 'कृत्तुपरम्मु' के मार्गपर है. आज जो बड़ा मागं बना है वहु उनके महलके बीचसे जाता है. उस स्थानसे लग- भग एक कर्लाग दूर खेतके उस पार एक राजमहल ग्राज भी मौजूद है. उसमें गोद ली हुई एक रानी, उनके पुत्र केरलवर्मा राजा और दो बालक आज भी रहते हें कोट्टयं राज्यका सीमा-सरहद-सम्बन्धी तथा अ्रन्य आवश्यक ज्ञान




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