जयप्रकाश की विचारधारा | Jaiprakash Ki Vichardhara

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Jaiprakash Ki Vichardhara by श्रीरामवृक्ष बेनीपुरी - Shriramvriksh Benipuri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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समाजवाद : सामाजिक संगठन की एक पद्धति समाजवाद के बारे में हमेशा याद रखना यह है कि यह समाज को नये सिरे से बसाने की एक प्रणाली है | समाजवाद व्यक्तिगत आचार की नियमा- वली का नाम नहीं है । यह वह चीज नही है जिसे हम या आप इक्के-दुक्के प्रयोग मे ला से । यह कुछ गरम दिमागों की पेदावारु भी नहीं है । जब हम कहते हैं. कि हिन्दस्तान में समाजवाद की स्थापना होनी चाहिए, तो उसके मतलब यह होता है कि देश के पूरे आथिक और सामाजिक जीवन का, उसके खेतों, फारखानों, विद्यालयों और मनोरजनगृहो का नये सिरे से -संगठटन होना . चाहिए । इसमें सन्टेह नही कि किसी एक गाव या किसी एक कारखाने का संचालन भी समाजवादी तरोके पर किया जा सकता है। लेकिन, उसे समाज- वाद नहीं कहा जा सकता | छोटे बच्चे भी मुंह से पानी का फुड़ेरा देकर उसपर सूरज के सातो रगो की लीला पैदा कर सकते हैं, लेकिन आसमान में जो इन्दरधयुष उगता है उसकी सतरगी छ्य ही न्या? होती है । ” इससे स्वभावत. दी यह नतीजा निकलता है कि जो छोग समाजवाद के आधार पर समाज का नवनिर्माण करना चाहते हैं उनके हाथों में अधिकार होना चाहिए और उस अधिकार के पीछे काफी ताकत दोनी चाहिए। विना इस अधिकार और ताकत के आदश वादियो की कोई भी जमात समाजवाद नही कायम कर सकती । किन्तु यहाँ हम सम ठेना हे कि इस अधिकार या शक्ति काक्या अर्थ १ भजकी दुनिया को ठेखिये तो आप पायेंगे कि जिस साधन से कोई गिरोह, कोई पासं या कोड आदमी अपनी योजना, अपनी स्कीम समाज या ( ३ )




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