दाखुन्दा | Daakhunda
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
51 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about राहुल सांकृत्यायन - Rahul Sankrityayan
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)चद्टानके पीछेकी तरफ चल पडी, जहाँ नौजवान बैठा हुआ था और
ऐसी सूरत बनाये, मानो नौजबानके वहाँ होनेका उसे पता ही नहीं |
उसने आश्चय प्रगट करते कहा---“यादगार ! तू यहाँ क्या कर रहा ?
“तू यहाँ क्या कर रही ९?
पानी लेने आई--कहकर वह पानीके किनारेकी तरफ चल पड़ी ।
“पानी लेने आई ! मैंने तो समझा, आग लेने आई, जोकि इतनी
जल्दीमें हे |
गुलनारने मुस्कुराकर तृबेको नीचे रख दिया और खुद मी चद्दानपर
बैठ गई। फिर एक क्षण तरुणकी चिन्तापूर्ण आँखोंकी ओर नजर
डालकर कहा---
--सच कह, यादगार ! तू यह क्या कर रहा है !
--पहले तू कह कि यहाँ क्यों आई ?
--मैं पानीके लिग्रे आईं; देख, यह रहा तृबा--कहते लड़कीने लौकेकी
तरफ इशारा किया |
--में यहाँ भेंड़े चरा रहा हूँ ; देख, यह रही चरवाहीकी लाठौ--
कहकर लाठीकी तरफ इशारा किया |
--यादगार ! मैंने ऐसी अवस्थामे तुके कभी नहीं देखा। आँखें बता
रहीं कि तेरे दिलमें कोई बड़ी भारी चिन्ता है, मन बेहद परेशान है ।
सच बता, क्या बात है ?
--ऊुड नहीं मृकेदुश्रा। मनमी मेराठीक है। हाँ, एक बात
तुझसे कहना चाहता था, कहूँ या न कहूँ, इसी दुविधामे पडा हूँ।
“अगर मुर्के खुश रखना चाहता है, तो कह डाल । चाहे बात
कितनी ही बुर क्यो न हो, मे उसे सुनकर रज्ञ न होर्जगी ।
--बात बुरी नहीं, अच्छी है। खासकर तेरे लिये शुभ और आनन््दकी
बात है। बता ही क्यों न दूँ !
पुराने कुर्तेकी ओर इशारा करते हुए गुलनार ने कहा--बस, यही
७
User Reviews
No Reviews | Add Yours...