श्रध्दांजलि | Shadhranjali
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
196
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)৪] श्रद्धापजलि
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अर्पित ऋरके अपनी वाणी या लेखनी को पवित्र कर
सकता हे!
১ ५८ ५६ ॐ रू
पक सम्रस्या सामने है। कृष्ण और ईसा को, या चैतन्य
और मोहम्मद को, मिन्न सिन्न गुण वाले विधिध महात्माओ
को, साथ साथ ही धरद्धाजलि केसे अर्पित की ज्ञा सकती है?
इस विषय में यही ध्यान में रख लेना पर्याप्त है' कि परमात्मा
के अनेक ढंग हैं. अनेक साधन हैं, जब जिस को आवश्यऋता
होती है, उससे काम चिथ जाता दै ! जिस समय
गर्मी की ज़रूरत होती दै, बह वड़े यत्न से संचित की जाती
है, पर पीछे उसकी जति हों जाने या उसकी उपयोगिता
न रहने परर, उसके हास का उद्योग, ओर सदी का
स्वागते किया जाता दै; यह नित्य का अनुभव है। इसी
प्रकार देश काछ की परिस्थिति के अनुसार कभी हिंसा क्षी
आवश्यकता होती है, और कभी अहिन्सा की । कभी गौतम
बुद्ध के आागमन की प्रतीक्षा की जाती है, कभी शिवा जी
का आह्वान किया जाता है |
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जिन महापुरप को यहां प्रद्धान्नलि अपि की जाती है,क्या
डनके अतिरिक्त और महात्मा इस श्रेणोमें महाँ आ सकते ? ऐसा
कहने की दुससाहल या खुखेता कौन करेगा ? भारत भूमितो
र्मगर्भा प्रसिद्ध ही है, इसके सामने सुदीर्भ-कल्पनातीत
इतिहास है। अन्य देशो में मी समय समय पर अनेक
बिभू तियां हुई हैं। अनेक तो प्रकाश में ही नहीं आयी जो
अकाशित भी हुई उनमें से भी वहुतों पर समय ने आचरण
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