उद्वैत वेदान्त के परिप्रेक्ष्य में | Udwaurt Vedant Ke Pariprekshya Mein

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Udwaurt Vedant Ke Pariprekshya Mein by डॉ नरेन्द्र सिंह - Dr. Narendra Singh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रो० अनुकूल चन्ध मुकर्जी को प्रो० रामचन्ध दत्तात्रेय रानडे के दृष्टिकोण से देखा है। प्रो० संगम लाल पाण्डेय के अनुसार ऐसे वैचारिक समन्वय अद्वैत वेदान्त में भरे पड़े हैं। विशेष रूप से आचार्य मधुसूदन सरस्वती ने ज्ञान और भक्ति का जो समन्वय किया है, उसी के आधार पर प्रो० संगम लाल पाण्डेय ने 'मधुसूदन सरस्वती के अद्वैतवाद” पर अपने शिष्य डा० ब्रजेद्ध सिंह दारा शोध करवाया, निस पर उन्हें इलाहाबाद विश्वविद्यालय से डी० फिल्‌० की उपाधि मिली। इसी समन्वय को उन्होने “भारतीय दर्शन की कहानी नामक ग्रन्थ के अन्तमेंभीदिया है जर यह माना है कि मोटे तौर से गोस्वामी तुलसी दास ओर उनका रामचरित मानस इस समन्वय को निरन्तर प्रचारित करते अये हैँ। ज्ञान, मूल्य और सत्‌ में सम्मिलित प्रमुख लेखों का संक्षिप्त वर्णन देना यहाँ अप्रासंगिक न होगा, जो इस प्रकार है- ज्ञान, मूल्य ओर सत्‌ के प्रथम दो निबन्ध- तत्व ज्ञान क्या है? ओर तत्वज्ञान के तीन संप्रत्यय हैँ प्रो° पाण्डेय के अनुसार तत्वज्ञान अथवा दर्शन न तो विश्व के पदार्थो का ज्ञान है, न ज्ञान का ज्ञान ओर न भाषा का विश्लेषणात्मक ज्ञान, अपितु वह साधन है जिसके दारा सभी वस्तुओं का सारभूत ज्ञान प्राप्त हो सकता है। दूसरे शब्दों में, वह समस्त ज्ञानों का एक समुच्चय है। विश्व के दर्शनिकों में तत्त्वज्ञान के तीन सम्प्रत्यय स्वीकार किये है। प्रथम सम्प्रत्यय के अनुसार तत्त्वज्ञान को सत्‌ की खोज होना चाहिए। सृष्टि विज्ञान अथवा मूलतत्त्व की खोज इसी सम्प्रत्यय के अन्तर्गत आते हैं। अधिकांश भारतीय एवं यूनानी दार्शनिक इसी सम्प्रत्यय को स्वीकार करते है । भारतीय दार्शनिकों मेँ आसुरि, दिङ्गनाग, धर्मकीत्तिं एवं गंगेश तथा पाश्चात्य दार्शनिको मेँ काण्ट ओर उसके अनुयायियो ने ज्ञानमीमांसा को तत्त्वज्ञान स्वीकार किया है। इसके विपरीत भारतीय दार्शनिकों में भर्तृहरि आदि तथा आधुनिक पाश्चात्य दार्शनिर्कों में विटगिन्स्टाइन आदि ने भाषा विश्लेषण को तत्वज्ञान स्वीकार किया है। इस प्रकार तत्त्वमीमांसा, ज्ञान-मीमांसा ओर अर्थ-मीमांसा इन तीनों सम्प्रत्ययो मे तत्वज्ञान विषयक सभी सम्प्रत्यय समाहित हो जाते हैँ ।




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