पिंगल प्रकाश | Pingal Prakash

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Pingal Prakash  by पं. रघुवरदयालु मिश्र - Raghuvar Dayalu Mishra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ख ) तथापि यदि हमको अच्छी तरह हर बातको समझ लेना और सब तरहके विचारोंकोी सुभीतेसे अच्छेसे अच्छे रूपमें बोल या लिखकर प्रकट करना दृष्टहो तो हमें अपनी मातृभाषाकी भी शिक्षा और व्याकरण जाननेकी आवश्यकता पड़ेगी । अभ्याससे इसी तरह हम पद्यरचनाको भी पद आर सममः सकते है, जेसा किं रामचरित-मानस जैसे उत्तम कोटिके महाकान्यको भी लोग प्रायः समभ ही लेते हैं, मानसके अक्षरविज्ञान और शब्द्विज्ञाकोकग विधिवत्‌ जान लेनेकी आवश्यकता नहीं पड़ती | फिर भी सभी तरहके अच्छे ओर शुद्ध पद्मयोंको भली- भाँति पढ़ और समझ सकनेके लिये कुछ थोड़ेसे छन्दःशाखत्रका ज्ञान तो परमावश्यक हैँ। सुतरां, जो स्वयं पद्मरचना करना चाहे उसके लिये तो इस विज्ञानका विधिवत्‌ जानना अनिवाय्य है । इसीलिये काव्यसाहित्यके रीतिग्रन्थोंमें शब्दशक्ति, भाव- भेद, रसभेद, अलंकार आदि के साथही साथ छन्द-शाख्नकी शिक्षा भी अनिवाय्यं समभी जाती है । यह तो सच हे कि कविताका प्रथम आविरभाव आदिकवि- के चोट खाये हुए हृदयसे हुआ है और आज भो हृदयहीन कभी कवि नहीं बन सकता । किन्तु हृदयसे निकलकर वाग्यंत्रमें प्रवेश करके कविता जिस साँचेमें ढल जाती है, उसका उत्तरोत्तत विकास होता आया है और उसके रूपरंग को संवारने में आज लोकानुभव ओर रीतिज्ञान दोनों बड़े सहायक हुए हैं। छन्दःशास्र भी इसी बनावसँवार का साधन है।




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