निराला और उनकी अपरा | Niralaa Aur Vunki Upaara

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Niralaa Aur Vunki Upaara by देशराजसिंह भाटी - Deshraj Singh Bhati

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१६. आलोचना भाग रे । उनकी उस समय की आधिक विपन्नता इतनी भयानक थी कि अपररिति व्यक्ति को सहज ही में विश्वास नहीं हो सकता 1 महादेवी ने प्रयाग में एक साहित्यकार संसद की स्थापना की थी। निराला की यह्‌ विपन्न दशा देखकर उन्होंने इन्हें इस संसद में आकर रहने के लिए आमन्त्रित किया । कुछ दिनों तक ये वहाँ रहे, पर इनके स्वाभिमानी मन ने इन्हें वहाँ भी न जमने दिया और वहाँ से निकलकर ये दारागंज की दुर्ग॑न्धपूर्ण संकरी गने के एक छोटे से मकान के कमरे में रहने लगे । इनका शरीर बीमारियों और चिन्ताओं ने खा-खाकर बिल्कुल जजंरित कर दिया था| फल्रतः इनकी दशा दिन-प्रतिदिन गिरती गई। इन्हें मृत्यन्मुख देखकर हिन्दी-साहित्य की आंखें खुलीं। दारागंज का वह छोटा-सा कमरा हिन्दी-प्रमियों के लिए तीथ-स्थान बन गया । लोगों का तांता बराबर लगा रहता । जब इनकी अवस्था और भी बिगड़ गई तो केन्द्रीय एवं प्रांतीय सरकारों से इनके लिए आथिक सहायता की प्राथनाएँ की गईं | कुछ आथिक सहायता मिली भी, पर अब उसका कोई उपयोग नहीं रह गया था । अन्त में हिन्दी के इस महान्‌ एव उपेक्षित कवि का १५ अगस्त १६६१ को देहावसान हुआ । इनके देहावसान के पश्चात्‌ हिन्दी वालों की आँखें खुलीं । इनके अभाव को तरह-तरह से दोहराया गया, इनकी जयन्तियां मनाई गईं और विविध पत्रिकाओं ने निराला विशेषाँक प्रकाशित किए | पर अब न तो इसका कोई उपयोग है और न इससे हिन्दी वालों के मार्थे पर लगा हुआ गहरा कलंक मिट सकता है और न इससे उस महाकवि की आत्मा को शान्ति ही मिल सकती है, जो अपने भौतिक रूप में सदेव उपेक्षित और अपमानित रही ।




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