उपहार | Uphaar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7 MB
कुल पष्ठ :
218
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)उदारता १३.
सत्र दुबले-पतले मरियल से हो जायें--चिड़चिड़े, कड़वे और शुष्क ।
और यह शुष्कता फैनती-फैलती यहाँ तक फैले कि पृथ्वी पर शुष्कता के
अतिस्क्ति और कुछ दिखाई ही न दे.। -
“और जो कोई हंसे तो गिरफ्तार कर लिया जाय । वहाँ रोना-पीटना
ही सुनाई दे चारों ओर ।” किशवर ने कहा |
एक ऊँचा ठट्ठाका पड़ा ।
त्र किशवर की पारी थी । वह बोली--ओऔर मेरा जी चाहता है
कि खूब लाल-सा गोल-मोल चेहरा हो जाय और बहुत वजन बढ़ जाय |
ऐसी स्वस्थ हो जाऊँ कि बस लोग देखा करें |”
मैंने उसकी हँसी उडाई--“लडकियों तो हर समय दुबे होने को
चिन्ता में रहती हैं और ये हैं कि बिल्कुल उलटी। यह भी नहीं कि
बहुत चुबली-यतली हैं; अपनी बदिन म सज से स्वस्थ और
ईसमुख । ^
ग्राकॉज्षा मो अताई तो क्या बताई । अचछी इसको खिल्लो उडाई
जायगी--मैंने मन मे कहा । अत्र सब्र मेरी ओर देखने लगे। मेरा
आखिरी नम्बर था। मैने बड़ी उपेक्षा दिखाते हुये कहा--“साइब मेरा
तो यही जी करता है कि किसी दिन फोज में कप्तान बनूँ। सिर पर
नोंकदार ठेपी हो, बाहों पर स्टार लगे हों। क्या 'शान होती है वर्दी
की |”?
उमा दिन मैंने सोच-साच कर एक चित्र चनाया। गोल-मटोल
लाल-सी गेद ! मट-पोटे हाथ पांव, फुटबाल जेता चेश | नीचे
लिखा--- एक महिला, आज से दो वर्ष ज्ाद !”
यह चित्र किशवर को दे दिया | उसने ले लिय्य । इस प्रकार मानो
कुछ हुआ ही नहीं |
न्ध्या रमय मुके एक चित्र मिला) एकं लम्व्रा-सा बखनुमा
आदमी जिसके कन्घे पर घोड़े की जीन थी और सिर पर एक फटा पुराना
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