उदय - अस्त | Uday - Ast

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Uday - Ast by सैयद महमूद अहमद - Saiyad Mahmood Ahamad

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उदय भस्त श्७ लघ मैंने ताज़ी दवा के वद्दाने से खिढ़को सोल दी, क्योंकि अब मुम्के लड़कियों से घद् पद्िला सकोच नहीं रहा--तो वह मूद दीवार के पीछे छिप गई, क्षेकिन दीवार में असण्य छेद थे १ मिनमें से मैंने देसा कि धह मेरी ओर देख रहा दे | मेरे हृदय में जुयनू-से चमकने खगे---जीवन परिवत्त्ना का माम है, और सूखी स्पजूरों की ओट में बैडी हुईं छोकरो से ई टो की इस दौवार के पीछे दवकी हुई छड़की कितनी प्यारी लगती दै ! मैंने एक कागज के पुरे पर “मिज्ञाज शरीफ़ ” लिखा और पुक ककढ़ पर लपेट कर परली छुत पर फेंक दिया । मैंने खिड़की बन्द कर दी । क्‍्याकि अब भौकर छुत्ते बाँध कर मेरे घूते उतारने भरा रहा था| धह्द मेरे पास था कर बैठ दी था कि थ्चानक 'खट' से भुक रंगीन शीशा किरची किरधी हो कर फ़शे पर विसर गया और एक कागज में लिपटा फकड़ मेरे सामने भा गिरा । “क्षौम घेषइफ़ का बच्चा है ?” मेरा नौकर चिधाइता हुआ खिड़की को शोर छापका । “कौन है अपनी माँ का लाइला १” और फिर अचानक पाँव पकड़ कर फ्रश पर बैठ गया था । बिलब्रिल्लाता और पत्थर फेंकने वाले को इकज्ञारों बातें सुनाता वह सीढ़ियों पर से उतर गया । मैंने कधइ पर से कागज उत्तारा $ क्षामानी क्षिखावट में लिपा था--- “'मिज्ञाज्ञ पूछ के रग रग में बिम॒ल्ियाँ भर दीं। बह भाये थे मेरे दिल को लगी घुकाने को 1? शिक्षित मालूम होती दै ।! मैंने चटप्रनो खोलते हुये सोचा। दाम # इशारे ये उसे शेर की रसोद पहुँचाई, तो चद्द खड़ी दो गईं। बढ़ी दर रद 2४. देखती रही, मानो कट्द रह्दी द्वो--'सेरी सब बढ़िनों की शादी हो चुछझी £ श्री+ मैं दी यहाँ रद गई हूँ। मेरा यहाँ अकेले जो नहीं लगता। मुझे ०7४ का ज़रूरत थी भौर में चकित था हि तुम्र इतने दिनों से इन रगरान हफतिम से नहीं भाँकते । मैं तुग्दारी राह देख रद्दी थी । अच्छा दे कि तहुम्र का गये * शुत्र है - श॒क्र है! और उसका थाँखों मे आँसू चमक रे बी छा ऑँचल से अपना चेदरा छिपाती परे चद्दी गई। दोवार ८ ४» मे हीरे छसका ऊँचा एढा की गुरगायी देखो भीर से समझा, जम 2« फुडी-आ्थोो घूड़ा मरा पसलियाँ को मेट्ख़ाता मेर क्लेजे में घैंसो वा रद 1 श् यह कहने का ज़रूरत नहों कि ककड़ फेंकने का सिफकिककूर ठक जारी रहा और चगले इतवार को णक घुघता! शॉ>्ड सथद 4 लेवैस्डर की शगम्त जप + ऑसी अत जरा >




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