शेर - ओ - शायरी | Sher - O - Shayari

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रस्ताबना शेरोशायरी के छः सौ पृष्ठोमे गोयलीयजीने उदू कविताके विकार और उसके चोटीके कवियोका काव्य-परिचय दिया । यह एक कवि हृदय साहित्य-पारखीके आधे जीवनके परिश्रम श्रौर साधनाका फल है। हिन्दीको ऐसे ग्र्थोंकी कितनी आवश्यकता हैं इसे कहनेकी श्राव- च्यकता नहीं । जितना जल्दी हो सके हमे उर्दके सारे महान्‌ कवियो- को नागरी भ्रक्षरोमें प्रकाशित कर देना हैं । गोयलीयजीका यह ग्रस्थ हिन्दीके उस कार्यकी भूमिका हूं। हिन्दी-साहित्य-सम्मेलन शीघ्र ही उर्दूके एक दर्जन श्रेष्ठ कवियोके परिचय-ग्रन्थ निकालनेकी इच्छा रखता है फिर हमें उनकी पूरी ग्रन्थावलियोंको नागरी श्रक्षरोंमे लाना हैं । हमारे महाप्रदेशने सस्क़ृतनिष्ठ हिन्दीको अपनी राज-भाषा स्वीकृत किया है किन्तु उसका यह श्रर्थे नही कि हमारे महाप्रदेश युक्‍्तप्रदेश बिहार महाकोसल विन्थ्यप्रदेश मालवसघ राजस्थानसघ मत्स्यसघ हिमा- चलप्रदेश पूव-पजाब झऔर फूलकिया संघ की सन्तानोने श्रपनी प्रतिभाका जो चमत्कार साहित्यके किसी भी क्षेत्रमे दिखलाया हैँ उसे अपनी वस्तुके तौरपर प्ररक्षित करना हिन्दीभाषियोका कर्त्तव्य नहीं है । जिस तरह भाषाकी कठिनाई होनेपर भी सरह स्वयभू पुृष्पदन्त श्रब्दुरंहमान श्रादि अपभ्रश कवियोकों हिन्दीकाव्य-प्रेमियोसे सुपरिचित कराना हमारा कत्त॑ंव्य हे उसी तरह उर्दूके महाकवियोकी कृतियोसे काव्यरसिकोंको वब्चित नहीं होने देना चाहिये । व्यक्तिके लियें भी बीस-पच्चीस साल अधिक नहीं होते जातिके लिये तो वह मिनट-सेकेन्डके बराबर हे । १९७०-७५ ई० तक शभ्ररबी भ्रक्षरोमे उर्दू-कविता पढनेवाले बहुत कम ही झादमी हमारें यहाँ मिल पायेंगे । झाजतक दुर्राष्ट्रीय भावनाझोके कारण हिन्दी-मुसल्मानोकी विचारधारा चाहे कैसी ही रही हो किन्तु अब वह हिन्दीमे वही स्थान लेनें जा रहे हे जो उनके पूर्वेजो जायसी रहीम श्रादिने लिया था भर जो उनके सहधर्मियोंने बग-साहित्यमे ले रखा है । हिन्दीको एक संप्रदाय-विशेषकी भाषा माननेवालें गलतीपर हे। समय दूर नहीं है जब ्न्न्न ण ब्न्न्न




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