गद्य रत्न माला | Gadhya Ratna Mala

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Gadhya Ratna Mala by गौरीशंकर हीराचंद ओझा - Gaurishankar Heerachand Ojha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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হু বাশ্লম্নাজা तुम चाय पी चुके ? अ्रवीण ने सद्दास भुख से कहा--हाँ; पी चुका । बहुत अच्छी बनी थी । 'पर दूध और शक्कर कहाँ से लाये ?? दूध और शक्कर तो कई दिनों से नहीं मिलता। मुझे आज- कल सादा चाय ज्यादा खादिष्ठ लगती है। दूध और शक्कर मिलाने से उसका खाद बिगड़ जाता है । डाक्टरों की भी यद्दी राय है, कि चाय हमेशा सादा पीनी चाहिये। योरप में तो दूध का बिलकुल रिवाज नहीं है । यह तो हमारे यहाँ के मधुर-प्रिय रइईसों की ईजाद है । जाने तुम्हें फीकी चाय कैसे अच्छी लगती है। मुझे जगा क्‍यों न लिया ! पैसे तो रखे थे ।? महाशय प्रवीण फिर लिखने लगे । जवानी ही में उन्हें यह रोग लग गया था, और आज बीस साल से वह उसे पाले हुए थे । इस रोग में देह घुल गई, स्वास्थ्य घुल गया और चालीस की अवस्था में बुढ़ापे ने आ घेरा; पर यह रोग अखाध्य था। सूर्योदय से आधी रात तक यह साहित्य का उपासक अन्तजंगत्‌ मे इना हा, समस्त संसार से झुँह मोड़े, हृदय के पुष्प और नैवेय चढ़ाता रहता था। पर भारत में सरसखती की उपासना लक्ष्मी की अभरक्ति है। मन तो एक ही था दोनों देवियों को एक साथ केसे भसन्न करता, दोनों के वरदान का पान्न क्यों कर बनता, और लक्ष्मी की अकृपा केवल धनाभाव के रूप में न प्रकट होती थी | उसकी सवस निदेय क्रीड़ा यह थी, कि पत्नों के सम्पादक और




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