मध्य एशिया तथा चीन में भारतीय संस्कृति | Madhya Asia Tatha Chin Me Bhartiya Sanskriti
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लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
242
श्रेणी :
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No Information available about सत्यकेतु विद्यालंकार - SatyaKetu Vidyalankar
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)विषय प्रवेश १५
इस क्षेत्र के भ्रन्य राजा उसके आ्राधिपत्य को स्वीकार करते थे। पान-छात्री खोतन
को प्रपनी अ्रधीनता में ले आने में समर्थ हुआ, और धीरे-धीरे उसमे कंस्पिथ्नः
सागर तक चीन की शक्ति का विस्तार किया। १०२ ई० तक यह सम्पूणं क्षे त्र चीन
की अ्रधीनता में रहा, जिसके कारण मध्य एशिया और चीन का सम्बन्ध बहुत बढ़
गया ।
चीन मे भारत के सास्कृत्तिक प्रभाव कै प्रसारमे दसं दशा से बहुत सहायता
भिली । चीन की एक प्राचीन श्रनुश्रुति के भ्रनुसार अशोक के समय (२१७ ई° पूर).
में कुछ बौद्ध प्रचारक चीन गए थे, श्लौर उन द्वारा वहाँ बौद्ध धर्म का प्रचार प्रारम्भ
किया गया था। इतने अ्रधिक प्राचीन काल में भारतीय प्रचारकों का चीन जा सकना
संदिग्ध माना जाता है । पर यह् निविवाददै, कि ईस्वी सन् की पहली सदीमेचीनमे
बौद्ध धर्म का प्रवेश हो चुका था। चीन के प्राचीन वुत्तान्तोके श्रनुसार हान অহা ক
चीनी सम्राट मिंग-ती ने स्वप्त मे एक सुवर्ण-पुरुष को देखा था, जिसके विषय मे पूछने
पर उसके दरबारियो ने बताया, कि यह् सूवणं -पुरूष बुद्ध था । इस पर मिग-ती ने श्रपने
दूत पश्चिम के राज्यों में उस प्रयोजन से भेजे, ताकि वे वहाँ से कुछ बौद मिक्षग्रोको
चीन झ्राने के लिए निमन्त्रित करें। चीन के दूत पश्चिम की ओर जाते हुए युद्दशियों के
राज्य में जा पहुचे । युइशि लोग इस समय तक बौद्ध धर्म को श्रपना चुके थे, भौर वहाँ
बहुत-से भारतीय बौद्ध विद्वान् विद्यमान थे। मिंग-ती के निमन्त्रणं को स्वीकार कर
धर्म रत्न और कश्यप मातग नामक भारतीय भिक्ष्, चीन गये (६० ई० पू०) श्रौर उसकी
राजधानी सीडान्-फ् (जो श्रव चीन के दनसी प्रान्त का मुख्य नगर है) मे उन्होने श्वेताश्वं
नामक विहार की स्थापना की । चीन जाते हए ये भिक्ष्. श्रपने साथ बहुत-से बौद्ध ग्रन्थों
कोभीने गये ये उन्होने ्रपमा रेष जीवन शवेताश्व विहार मे व्यतीत किया, भौर
बह निवास करते हुए श्रनेकं बौद्ध ग्रन्थो का चीनी भाषा में भनुवाद किवा। दसमे
सन्देह नही, कि ईस्वी सन् की पहली सदी मे चीन मे बौद्ध धमं मलीर्मांति स्थापित
होना प्रारम्भ हो चुका था, और धर्मरत्न तथा कश्यप मातंग का अनुसरण कर बहुत-से
बौद्ध भिक्षु मध्य एशिया से चीन जाने लग गए थे। ये भिक्षु केवल भारतीय ही नहीं
थे, इनमें खोतन, कुची, सुग्ध श्रादि भप्रनेक प्रदेशों के भी लोग थे, जो इस समय तक
बौद्ध धर्म को स्वीकार कर चुके थे। बाद मे समुद्र मार्ग से भी बौद्ध प्रबारकी ने चीन
जाना प्रारम्भ किया, और उनके प्रयत्त से चीन के प्राय सभी निवासियों ने बौद्ध धर्म
को भ्रपना लिया । बौद्ध घमं के साथ-साथ भारतीय सस्कृति भौर कला प्रादि का भी
चीन में प्रवेश हुआ, जिसके कारण यह विशाल देश भी बृहृत्तर भारत का एक श्रग
बन गया ।
तिब्बत में बौद्ध धर्म का सूत्रपात चौथी सदी ईस्वी पश्चात् मे हो गया था, पर
वहाँ उसका विशेष रूप से प्रचार सातवी सदी में हुआ । उस समय॑ बहाँ स्रोड-उचन्-
भम्-पो नामक प्रतापी राजा का हासन था । उसने दौ विवाह किये थे, एक चीन की
राजकुमारी से और दूसरा नेपाल के राजा श्रंशुवमेन की कन्या भृकुटी देवी से । ये दोतों
बौद धमं की भ्रनुयायी थीं। इसके प्रभाव से राजा ने भी बौद्ध धर्म को झ्पना लिया।
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