शेष स्मृतियाँ | Saishe Ismrtiya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : शेष स्मृतियाँ  - Saishe Ismrtiya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about रघुवीर सिंह - Raghuveer Singh

Add Infomation AboutRaghuveer Singh

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
+~ चि १ ७ রে अतः वहे चाहता हैँ कि उस सत्ता की स्मृति ही;किसी जन-समूह के बीच बनी रहे। बाह्य जगत्‌ में नहीं तो अन्तजेगत्‌ के किसी खंड में हो वह उसे बनाए रखना चाहता हैँ । इसे हम अमरत्व की आकांक्षा या आत्मा के नित्यत्व का इच्छात्मक आभास फह सकते हेँ-- “भविष्य में आने वाले अपने अन्त के तथा उसके अनन्तर अपने व्यक्तित्व के ही नहीं, अपने सर्वेस्व के, विनष्ट होने के विचार मात्र से ही मनुष्य का सारा शरीर सिहर उठता हैं ।. .... . . . मनुष्य इस भौतिक संसार में अपनी स्मृतिया--अभिट स्मृतियाँ--छोड़ जाने को विकल ह उठते हं ।'' अपनी स्मृति बनाए रखने फे लिए कुछ मनस्वी कला का सहारा लेते हैं और उसके आकर्षक सौंदय्यें की प्रतिष्ठा करके विस्मृति फे गड़ढे में फोंकने वाले काल के हाथों को बहुत दिनों तक--सहसरों वर्ष तक--थासे रहते हेँ-- “यद्यपि समय के सामने किसी की भी नहीं चलती तथापि कई मस्तिष्कों ने ऐसी खूबी से काम किया, उन्होंने ऐसी चालें चलीं कि समय के इस प्ररुयंकारी भीषण प्रवाह को भी बाँघने में वे समर्थ हुए । उन्होने कार को सौन्दयं के अदृश्य किन्तु अचूक पाश में बाँध डाला ह, उसे अपनी कृतियों की अनोखी छटा दिखा कर लृभाया ह; यों उसे भुलावा देकर कई बार मनुष्य अपनी स्मृति के ही नहीं, किन्तु अपने भावों के स्मारकों को भी चिरस्थायी बना सका है ।* इस प्रकार ये स्मारक फाल के प्रवाह फो कुछ थाम कर मनुष्य की कई पीढ़ियों की आँखों से आँसू बहवाते चले चलते हैं) मनुष्य अपने पीछे होने वाले मनुष्यों को अपने लिए रुलाना चाहता है । सहाराजकुमार फे सामने सम्राटों की अतीत जीवन-लीछा फे ध्वस्त रंगमंच हैं, सामान्य जनता की जीवन-लीला के नहीं । इनमें जिस प्रकार भाग्य के ऊचे-से-ऊचे उत्थान का दृश्य निहित है चसे ही गहरे से-गहरे पतन का भी । जो जितने ही ऊँचे पर चढ़ा दिखाई देता हें २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now