शरत निबंधावली | Sharat Nibandhavali

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Sharat Nibandhavali by शरतचन्द्र चट्टोपाध्याय - Sharatchandra Chattopadhyay

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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स्वराज्यकी साधनामे नारी १७ ये सब वातें मैं केवल इसलिए नहीं कह रहा हूँ कि कुछ कहना चाहिए | समामे खड़े होकर मनुप्यत्वके आदर्शका अमिमान लेकर मी प्रकट नहीं कर रहा हूँ | आज मै बिलकुल अ३नी गरजसे कह रहा हूँ । आज जो लोग खराज पानेक़े लिए सिर पटककर जान दे रहे हैं, में भी उनमेंसे एक हूँ 1 किन्तु मेरे अन्तर्यामी मगवान्‌ किसी ठरह मुझे भरोसा नहीं देते। कहाँसे, किसी अलक्ष्य स्थानसे जैसे वह हर घडी यह आमास दे रहे है कि यह नहीं होनेका | जिस चेशमें, जिस आयोजनमे, देशकी नारियों सम्मिलित नहीं हैं, उनकी सहानुभूति नहीं है, इस सत्यकी उपलब्धि करनेका कोई ज्ञान, कोई शिक्षा, कोई साहस आजतक जिनको हमने नहीं दिया, उनको केवल घरके घेरेंके भीतर विठाकर केवल चरखा कातनेके लिए वाध्य करके ही कोई बडी वस्ठु नहीं प्रात्त की जा सकेगी । औरतोंको हमने जो केवल औरत वनाकर दी रक्खा है, मनुष्य नही त्रनने दिया, उसका प्रायश्वित्त खराज्यके पहले देशकों करना हीं चाहिए। अत्यन्त स्वार्थकी खातिर जिस देशने जिस दिनसे केवल उसके सतीत्वको ही चढ़ा करके ठेखा है, उसके सनुष्यत्वका कोई खयाल नहीं किया, उसे उसका देना पहले चुका देना ही होगा ! इस जगह एक आपत्ति यह उठ सकती है कि नारीके लिए, सतीत्व वस्तु तच्छ नदीं है ओर यह भी सम्मव नहीं कि ठेशके लछोगोंने अपनी मॉ-बहन- बैयियोको साध करक छोय वनाकर रखना चाहा है | सतीत्वको मैं भी ठुच्छ ज्ञहीं कहता, किन्तु इसीको उसके नारी-जीवनका चरम और परम श्रेव जाननेको भी में कुसंस्कार समझता हूँ । कारण, मनुष्यका मनुष्य होनेका जो खाभाविक ओर उच्चा दावा है, उसे चकमा देकर जिस किखीमे जिस किखी चीजको वड़ा करके खड़ा करनेकी चे की है, उसने उठे मी धोखा दिया ह ओर आप भी ठगा गया है । उसने -उसे भी मनुष्य नही वनने दिवा ओर वैते ही अन- जानम अपने मनुष्यत्वके समी छोय कर डाला है। यह वात उसका बुरा करनेकी चेश्टामे भी सत्य है और उसका भला करनेकी चेशमे मी सच है। ॐडरिक दि ঈত (05057107155 0586) बहुत बढ़े राजा थे। वह अपने देशकी और लोगोंकी भलाईके वहुतते काम कर गये है; लेकिन अपनी अजाको उन्हींने मनुष्व नहीं बनने दिया। इसीसे उनको भी मरनेंके समय य




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