भारतीय अर्थशास्त्र एवं आर्थिक विकास | Bhartiya Arthsastra Avam Aarthik Vikas
श्रेणी : अर्थशास्त्र / Economics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
636
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about डॉ जगदीश नारायण निगम - Dr. Jagdish Narayan Nigam
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मास्तीय च्र्थशाल्न का शरर्थ, विपय, तेन, एव श्रध्ययन का महत्व ६
समभः लँ । यह एक रेखा पियय है जिसे अ्र्न्वगत हम भारत दी वर्तमान समय पी
লিলিনা आर्थिक समस्याथा का विश्लेषणात्मर अध्ययन जरते हैं। ऐसे अध्ययन का
कपल यही उद्देश्य होता हैं कि हम देश वी आर्थिक स्थिति से भली प्रजार परिचित हो
^ ज्ञायँ जिसके आधार पर हम देश वी भायी आर्थिक प्रद्नत्तियों का सफवतापूर्वर अनुमान
लगा सस्ते हैं| देश वी आर्थिक स्थिति का ऐसा वस्तुगत (००1०८७॥४८) अद्ययन
देश वी श्राधिफर समृद्धि एवं विकास के लिए बनाई जाने वाली योजनाओं के हेतु
पथप्रदर्शन का कार्य करेगा | इ
अत भारतीय अर्थशात्र वह शास्त्र दह्वे जिसके अलर्गत हम भारत की
विमिन्न आर्थिक समस्या्रों का रिस्तृत एप वैदानिर अध्ययन करत हैं और उन
समस्पायों के नियारण के लिए मुझ्ाप॒ प्रस्तुत करते हैं। इसके लिए हम देश पी
भौगोलिक, सामानिक एवं यजनैतिर दशा छा भी अध्ययन करना पडता है और
साथ ही उनया देशवासियों क आरार्थिर जीयन पर क्या प्रमाय पडता है इसका भी शान
, प्राप्त करना अनिवार्य তীরা ই বখাকি প্রাগ্নিক অত म देश क्री आर्थिक स्थिति इस
सामाजिक एवे राजनैतिक रुस्थाओं से प्रभागित हुए লিনা নর্থ रह सकती । লাজ
वासियां को इस सत्य का कड्ढ श्रन॒मय है। यद्यपि भारत आज एए स्वाधीन देश है
और जिसे ससार का एक महान् प्रचातन्त्र देश कहलाये जाने का गौरय ग्राप्त है फिर
भी आज से कुछ बष पृरं्त तर यह दारुता वी जजीस में जरूड़ा हुआ था और इस
বাল লুসাই ইজ জাতী সামির शेप्रण॒ (०८०7०71० 6০021018010) ইমো
है उससे प्रत्येक देशयासी भलीमाँति परिचित है। एफ प्िदेशी शासन उ अधीन होने
पर देश अपने थ्रार्थिक लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता । स्वतत्र होने के पूर्व हमारे देश
में अग्रेजों का शासन था जिन्हाने सदैय हमारे देश वो अपने आर्थिक लक्ष्या ती पूर्ति
না বলত साधन मात्र ही समझ | परिणामस्परूप हमारे देश का इतना आर्थिक पतन
हो गया रि स्वतनता प्रा्त होने करे लगभग १३ व पश्चात् मी देश थी य्रार्थिर स्थिति
गम्मीर ही ननी हुई है और आये दिन देशयासिर्या के सामने अनेक ग्रर्थिक कटिनादयाँ
पनी ही रहती हैं। देश म रन्न री षमी, यायश्यक वस्तुं कां अपर्याप्त उ्यादन एव
देश के आर्थिक प्रिकास सम्यस्धी अनेत समस्थाएँ राष्ट्र के लिए चिन्ता का उ्रिपय লী
हुई है। भारतीय अर्थशास्त्र के व्िद्ाथा ক্ক समक्ष यही প্রীত ইত্ধী তী अनेक य्रार्यिक
समस्मा हैं जिनका वह भारत की भीगोलिक, सामाजिक एय राजनेतिर पृष्ठभूमि भे
अध्ययन एव विश्लेषण कसा है जैसे देश वी हृप्रि सम्बन्धी समस्पाएँ, ग्रीद्योगिक
বিজ্ষাঘ ঝফনপ্থী समस्पाएँ, याताबात, व्यावार एय वित्तीय समस्याएँ इत्यादि ।
भारतीय জগ্রহ্থাজ का क्षेत्र (35९००ए९ ০£ 10120. চ0500011০৭)--
भाखीय थअर्थशात्र एक ऐसा विपय है जिसके अध्ययन का क्षेत्र ग्रत्यन्त व्यापत है
जैसा कि उपरोक्त परिमापा से स्पष्ट है। मारतीय अर्थशास्त्र के अस्त हम माख को
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