रत्नकरण्ड श्रावकाचार | Ratnakarrand Sharavkachar

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : रत्नकरण्ड श्रावकाचार  - Ratnakarrand Sharavkachar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about सदासुखदासजी काशलीवाल - Sadasukhdasji Kaashlival

Add Infomation AboutSadasukhdasji Kaashlival

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
हुआ है इस विषयके लिए विवेचक्र अनेक ग्रन्थ उपलब्ध हें जिनमें गृहस्थ और साधुओंके आचार-विचारका विवेचन पाया जाता है । प्रस्तुत प्रन्थमी श्री आचार मागेसे सम्बन्ध रखता है जिसको श्री पं० जुगलकिशो रज़ी मुख्तार साहबके शब्दोंमें सभी चीनधमंशास्त्र अथवा रट्नकरणडश्राव काचार कहते हैं प्रन्थमें जेन आरावकके आचारोंका सांगोपाहु कथन दिया हुआ है यह ল্য उपलब्ध श्रावकाचारोंमें सबसे प्राचीन है, रचना संक्षिप्त सरल तथा सूत्रात्मक होते हुश्भी गम्भीर अथेकी प्रतिपादक है उसका एक एक वाक्य जंचा तुला है प्रथमे लक्षणोके अथंकी अभि- ब्यंजकता, आप्त-आगम और गृरुके क्क्षणोंकी परिभाषाएँ तथा र्नत्रय द्ादश ब्रतों और प्रतिमाओं $ लक्षण और सम्यर्दर्शन- की महत्ताका स्पष्ट कथन दिया हुआ है साथही जैनतीथंकर केबलोकी अनीहित धर्मदेशनाको सुन्दर उदाहरण द्वारा पुष्ट किया गया ह और बतलाया है कि संगीतज्ञके हस्त स्पशंसे वजने वाला मृदङ्ग क्या रि,ल्पीके कर स्पशेकी अपेक्षा रखता है, नहीं रखता, उसी तरह बीतराग आप्तकी देशना सावं जनके हित- के लिए भव्योंके पुण्योदयसे बिना किसी इच्छा के होती है । ्न्थमें वाक्य-विन्यास सुन्दर दँ श्रौर वे अ्रनेक उत्तम सक्ति्यो तथा अनुप्रास श्रादिकी दिव्यद्चरासे ओत-ओत हैँ । विवेचन शैली सरल शौर श्रति मधुर दै । परथमे दाशेनिकताका पद्‌ पद्‌ पर अनुभव होते हुए भी उसमें दाशंनिक भ्रन्थां जेसी जटिलता एवं दुरूदता नहीं है और न विचारोंमें कहीं संकीखं- ३




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now