प्राचीन जैन इतिहास भाग 3 | Prachin Jain Itihas Bhag 3
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
144
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)५ तसय भाग
(४ ) एक हजार वर्षफी मावकी यु थी और दश पुष्य
ऊंचा शरीर था |
(५) जापके साथ खेलनेको स्व॒गेसे देव बाते थे और
आपके बच्ध तथा जाभूषण भी देवलोहसे जाते थे |
(६ ) एक दिन मगधघदेशके रहनेवाले एक वेश्यने राजगृहके
स्वामी जरासिंधुसे द्वारिका नगरीक्ली सुंदरताका वर्णन किया। यह सुन-
कर् जरात क्रोधसे अघा होगया भोर युद्धको चढदिया | नारदने
यह स्र भरीरप्णङ सुनाई। सुनते ही श्रीकृष्ण श्चुझ्लो मार्नेके
लिए तेयार हुण। उन्हेंने श्रो मेमिकुपारसे कहा कि भाव লে
नगरकोी रक्षा कोजिए | झवघिज्ञानकें घरीी प्रसशचित्त नेमिकुमारजी
अघुर नेत्रेसि हंसे और जो कट कर स्वीकारता दी । नेमिक्रुमारके
ईसनेसे श्रीक्ृष्णने विन्यक्रा निश्चय कर छिया।
(७) एक सपय जाप कुमार णदस्थामें झपनी भावों
( श्रीकृष्णकी रानियों ) के साथ जल्क्रीड़ा करते थे। स्नान फरनेफे
আবু উন তথ उन््हंने सत्यभामासे सपनी घोती घोनेकनी फहा |
सत्यमामाने तानेके साथ ऋहा-क्या जाप कृष्ण है, सिन्द
नागशस्पापर चढ़कर थारंग नामफा तेनवान धनुष्प चंदृ।या णी
सब दिशार्थोंक्ने फेपादेनेवाल। शंख बजाया है। ऐसा साहयका राम
भाषते नरह सेहत |
(८) सच्यभामाकोी बात नश ठे শানু
यहां पहिले तो ये महासर नाप थेयापर ले
चढ़ाया और बादमें मरनी भावामसे सब दिशा 5
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