जनमानस | Janmaanas
श्रेणी : धार्मिक / Religious, पौराणिक / Mythological
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2 MB
कुल पष्ठ :
86
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)इन मोड़ों की बदौलत
आस्फालित एवे द्रूतचालित दै
क সঃ
में इन मोड़ों में टूट भी सकता था---
लाग्वों आये दिल टूटते ही हैं ।
कब इन मोड़ों के व्यूद से
इन्सान का जूझना बन्द होगा!
कब होगा नया লম্বা
2. हर मन की हर बात नहीं पूरी होती है
[1]
धरतीवालों को चन्द्र ओर तारे
लगते हैं पास पाम ।
लगते सरिता के तट भी,
मिलने का करते से प्रयास |
उठता ढलता सूरज भी,
जतलाता पवत निज निवास |
मथुरा गोकुल इस जग को,
लगते करते से बात हास ॥
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