जनमानस | Janmaanas

Janmaanas by डॉ रवीन्द्र कुमार जैन - Dr. Ravindra Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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इन मोड़ों की बदौलत आस्फालित एवे द्रूतचालित दै क সঃ में इन मोड़ों में टूट भी सकता था--- लाग्वों आये दिल टूटते ही हैं । कब इन मोड़ों के व्यूद से इन्सान का जूझना बन्द होगा! कब होगा नया লম্বা 2. हर मन की हर बात नहीं पूरी होती है [1] धरतीवालों को चन्द्र ओर तारे लगते हैं पास पाम । लगते सरिता के तट भी, मिलने का करते से प्रयास | उठता ढलता सूरज भी, जतलाता पवत निज निवास | मथुरा गोकुल इस जग को, लगते करते से बात हास ॥




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