स्वास्थ्य प्रदीपिका | Swasthya Pradipika
श्रेणी : विज्ञान / Science, स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तक अंगीठी भली भाँति न सुलग जाय और उससे धुआ निकलना बन्द
न हो जावे तब तक उसको कमरे के भीतर न रखना चाहिये। भीतर
रखने पर कमरे की खिड़कियाँ खोल देनी चाहिये |
इनके अतिरिक्त अन्य गसे भी वाय् में उपस्थित मिल सकती हैं
विशेष कर जहाँ पर कल या कारख़ाने होते हैं। वहाँ के वायु-मंडल में
उन कारख़ानों से उत्पन्न हुई गैसें उपस्थित होती हैं | हाइड्रोजन सल्फ़राइड,
काव्य रेटेड हाइड्रोजन, सल्फूरिक अम्ल, सल्फ़र डाई आक्साइड आदि
देसी दी गसं ह ।
ऐमोनिया नामक गेस मोरियों के पास तथा जहाँ कुछ वस्तु ॒सड़ती
हों या मलमूत्र एकत्र हों वहाँ पाई जाती है ।
इन वस्तुओं के अतिरिक्त रोगों के जीवाणु, विष्ठा के कण, वालों के
कड़े. चमं के अत्यन्त सूक्रम कण भी वायु में अशुद्धि के रूप में उपस्थित
अहते हैं।
वायु-मंडल की शुद्धि--ये सब श्रशुद्धियाँ भिन्न भिन्न कारणों द्वारा,
जिनको बताया जा चुका है, उत्पन्न होकर वाय में मिल जाती ह जिससे वायु
दूपित होती है। यदि यह अशुद्धियाँ एक ही स्थान पर एकत्र रहें तो वहाँ
की वायु इतनी विपैली हो जायगी कि उसमें किसी भी प्रकार का जीवन न
रह सकेगा | किन्तु प्रकृति ने ऐसा प्रबंध किया है कि वायु स्वयं ही सदा
शुद्ध होती रहती है । शुद्धि के निम्न लिखित सुख्य साधन हैं :--
“~ ^
# 3
(१) विसजेन ( 1 ण्डका “)--गैसों के इस गुण का वर्णन
'पहिले ही किया जा चुका है। जहाँ एक गैस वायु में अधिक मात्रा में
[उपस्थित होती हे वह वहाँ से उस स्थान पर चली जाती है जहाँ उसकी
मात्रा कम है। इस कारण वायु में जितनी भी गैस पाई जाती हैं उनकी
मात्रा सदा लगभग एक समान रहती है।
( २) तीत्र वायु या आँधी--आँधी से वायु-मंडल स्वच्छ हो
जाता है| धूल के कण, जीवाणु इत्यादि जो ठोस पदार्थ वायु-मंडल में
५
हक
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