गुरु वाणी | Guru Vani

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Guru Vani by सुमेर कुमार जैन - Sumer Kumar Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रहिसा व श्रराजकता उन्मूलन हेतु अ्रनुशासन की शिक्षा श्रावश्यक सच्चा ज्ञान वही है जो दु खो को दूर करने मे सक्षम हो । वह ज्ञान किस काम का जो दुख दूर न कर सके ? स्वतत्रता का श्रथे नही है । जब तक इस देश मे को सिखाने-पढाने की व्यवस्था स्कूलो-कालेजो मे नही को जावेगी तब तक इस देश मे निरन्तर वढती हिंसा को कोई नहीं रोक सकता । ससार मे जितने जीव है वे एक टूसरे का उपकार करके जी सकते हैं ्रपकार करके कोई नही जी सकता वह कभी शान्ति प्राप्त नहीं कर सकता । दि० २४-१९२-७८ उपकारक दृष्टि श्रपताइए-- भव्य महानुभावो मैं भारत के श्रनेक प्रदेशो मे भ्रमण करता रहा हैं। ्रमण के दौरान मुझे कही कोई कठिनाई नहीं हुई । मैं जब की यात्रा पर था तो श्रनेक लोगो ने मुभके आ्रागे जाने के लिये मना किया कि वहा सर्दी बहुत है रास्ते मे वर्फ॑ ही वरफ है रहने के लिये स्थान नहीं मिलेगा । परन्तु मैं आ्रागे बढ चला । पूरी यात्रा के दौरान वहा की जनता पुलिस चौकी वाले सभी रहने के स्थान श्रादि की व्यवस्था करते रहे । श्रपने सन मे यदि दूसरों के प्रति सदुभावना है दुसरे की कठिनाई मे सुविधा प्रदान करने की भावना है तो उसके मागं मे किसी भी प्रकार को श्रडचन या वाघा नहीं झा सकती यह मेरा हृढ विश्वास है । जब हम दूसरो को सहयोग देंगे तथी हमे दूसरों का सहयोग मिल सकेगा । तत्वाथेसूत्र मे कहा है-- परस्परोपग्रहो भर




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