भारतीय मिथक कोश | Bhartiya Mithak Kosh

Bhartiya Mithak Kosh by डॉ. उषा पुरी विद्यावाचस्पति - Dr. Usha Puri Vidyavachapati

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

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*डॉ उषा पुरी विद्यावाचस्पति*

*जन्म*: १० दिसंबर १९३४
*मृत्यु*: २९ नवंबर २००७

*शिक्षा*:
- एम. ऐ. , पी एच डी ,
हिन्दी साहित्य, दिल्ली विश्वविद्यालय,
- विद्यावाचस्पति, गुरुकुल कांगड़ी विश्वविद्यालय ।

*व्यवसाय* :
प्राध्यापिका, लेडी श्रीराम कॉलेज, १९५७ - १९६०,
वरिष्ठ प्राध्यापिका, हिन्दी विभाग, दौलत राम कालेज, १९६० - १९९४

*प्रकाशित रचनाएं*:

*उपन्यास*
1. ममता की इकाइयां
2. अंधेरे की परतें
3. मुखौटों के बीच
4.गुलाब की झाड़ी

*संयुक्त कविता संग्रह*

5. छः × दस
6. कविताएँ: माँ और बेटे की

*शोध*

7. बृज भाषा काव्य में राधा
8. मिथक उद्भव विकास और हिंदी साहित्य
9. गृह नक्षत्रों की आत्मकथाएं
10. रीति कालीन कवित

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राककथन भारतीय साहित्य के प्रमुख उपजीव्य आख्यानात्मक ग्रथ एवं उनमें प्रयुवत आख्यान जिन पुराकधाओ भाद्यबिवों तथा भति-प्राकृतिक तत्त्वो से पारिपुणें हैं के पाठक के मन में गहरी जिज्ञासा उत्पन्त करने वाले हैं । इस प्रकार की विचित्र पुराक्थाएं आद्य्िवों से पुष्ट होकर पाइचात्य देशो के साहित्य मे भी प्रचुर मात्रा में पायी जाती हैं क्तु उनके स्वरूप में कुछ अतर है । अठिप्राकृत तत्त्वो के वर्णन में समानता होने पर भी देशीय वातावरण के अनुसार देवी देवत्ता और राक्षम अपनी दयक्ति-सामर्थ्य॑ में कुछ भिन्न प्रतीत होते हैं। इस प्रकार के विलक्षण वर्णवो को पढकर पाठक के मन मे जिज्ञासा के साथ इनके स्वरूप विर्लेषण की उत्सुकता जागती है और इनके उद्भव भर विकास की परपरा का रहस्य जातने की बलवत्ती इच्छा पेदा होती है । आज से लगभग बीस चपे पहले साहित्यानुशीलन के समय जव मेरा सपकें इस श्रकार ने मिथकीय आख्यानो से हुआ तो उसके मूल उत्म तक पहुंचने की उत्कठा मत्यत तीव्र हो गयी । यह जिज्ञासा और उत्कठा ही इस मिथक कोश के प्रणयन की मूल प्रेरणा हैं। मैंने साहित्य की विविध विधाओ में प्रयुक्त एक ही मिथक आख्यान या पुराक्था को परिवतित रूप में देखा तो मन सप्रइन हो उठा कि यह बैविघ्य और वेचित्य वयो है ? वैदिक वाइमय वौद्ध-जैन साहित्य रामायण-+सहा भारत पुराण अभिजात सरइत साहित्य प्राकृंत एव भपश्रदा साहित्य तथा आधुनिक हिंदी साहित्य तक मिथको की अजस्र परपरा है । इन मिथको मे केवल कथा या कल्पित आख्यान ही नहीं घरन्‌ शान-विशान के विविध विपयो का साकेतिक निवेश है जिसे पढनर मन विस्मयविमुग्थ होता है । इन मिथको के अतग्रंथित भारतीय सास्कृतिक परपरा का जो रूप सुरक्षित है उसका अनुसघान अद्यावधि नही हुआ है । यदि सभी प्रकार के ग्रथो का अनुशीलन कर एक मिथक क्थाकोश तैयार किया जाय तो हमारी साहित्य-सपदा वी वहुत बडी प्रच्छन्न निधि हमारे हाथ ला सकती है। निश्चय ही यह एक कठिन कार्य है फ्तु मेरे मन में इस अमूल्य निधि को प्रवादा में लाने की लालसा वियत बीस वर्षों से सक्रिय रही है और उसका परिणाम ही यह मिथक कोश वा मिर्माण है । मिथक-सकलन के लिए आधार प्रथो के चयत की समस्या का समाधान मैंने अपने साधन शान उपयोगिता भौर आकार के आधार पर किया है। मैं अपने निर्णय से स्वय




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