मैथिली लोकगीत | Maithili Lok Geet

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Maithili Lok Geet by श्री राम इक़बाल सिंह 'राकेश' - Shri Ram Iqbal Singh ' Rakesh'

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राकथवन [१] मिथिला प्राकृतिक सोन्दय्यं से परिपूर्ण प्रान्त है । इसकी लावण्यनयी मजुल मूर्ति, मघूरिमा से भर, हुई सरस वेला और उन्मादिनी भ चनाये किसके हृदय को नहीं गुदगुदा देती ? यहाँ के वसन्तकालीन सुहाघने समय, वाँसो के मुरमूट में छिपी गिलहूरियों के प्रेमालाप, सुरश्निजित सुन्दर पुष्प, सुचिच्रित पशु-पक्षी बौर कोमल पत्तियों के स्पन्दन अपने इ्दं-गिरदें एक उत्सुकतापूर्ण रहस्यमय आकर्षण पैदा कर देते हूं। कहीं ऊद्दे-ऊदे बादछो की आँखमिचीनी, कही कहर-कहर करती हुई वलखाती नदियों की अठ- खेंलियाँ, कही धान से हरे-भरे लहरूहाते खेतो की क्यारियाँ--मसलव यह कि यहाँ की जमीन का चप्पा-चप्पा और आसमान का गोशा-गोगा काव्य की सुरभि से सुरभित हो रहा हू और सगीत की निमक् निर्मरिणी सदा अविराम गति से कलमल करती हुई दाड रही है । मिथिला नामक महत्त्वपूर्ण पुस्तक के लेखक श्री लदमण भा के अनुसार मिथिला पूरब से पश्चिम तक १८० मील बौर उत्तर से दक्षिण तक १२५ मील हूँ। इसका क्षेपफल २२५०० वरगमील हे। दरभगा, सुजफ्फरपुर, पूर्णिया, चम्पारन, उत्तर भागरूपुर तथा उत्तर मुगेर के जिले इसके अन्तर्गत है । पश्चिम की ओर सदानीरा--शालग्रामी तथा पुरव की ओर कौथिकी के बीच की तराई भी इसमें सम्मिलित हैँ। पाँच हजार वर्षों को पार कर चला आता हुआ इसका इतिहास ससार के प्राचीनतम इतिहास के रूप में प्रतिष्ठित है । इसकी जमीन का भूतात्तविक रचना-काल पाँच लाख वर्ष प्राचीन है, और झूगर्भवेत्ताओं के अनुसार इसका भूपृष्ठ पुथिवी के भूपृष्ठ की अपेक्षा आधुनिक है। आज से




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