गीता का व्यवहार - दर्शन | Geeta ka vyavhar - Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राक्कथन उप इस प्रकार कमानुष्ठान के दो विरोधी पक्षों को हमारे समन रखकर भगवान्‌ श्रीकृष्ण झजुन से कहते हैं कि वह इस विषय पर उनका निश्चित सिद्धान्त सुने । निश्चय श्खखु में तत्र त्याग भरतखत्तम । ४ तदनतर भगवान फिर और कहते हैं -- यजदानतप कम से त्याज्य का्यमेव तत्‌ । यज्ञो दान तपश्चेव पावनानि मनीपिशाम्‌ ॥ ४ ॥ एतान्यपि तु कर्माणि सड् त्यक्त्वा फलानि च । कतंब्यानीति मे पार्थ निश्चित मतमुत्तमम्‌ ॥ दे ॥ भगवाच श्रीकृष्ण ने यज्ञ दान तप श्र कम के झनुष्दान पर बहुत दी अधिक जोर दिया है ओर इसे झपना सबसे अधिरू निश्चित तथा. निर्दोष एव यथाथ सिद्ध त च्तद्ाया है । भगवान्‌ ने अजन को इस बात की मी चेतावनी दी है कि फिंवी निपत कम का सयास के नाम पर त्याग नहीं किया जा. सकता। नियतस्य तु सन्यास कमेणो नोपपयते । ७ तृष्णा लोभ या कायाक्लेश के बहाने कत ये से विमुख होना. सगवत्त ने मोक्षार्थी के लिए झनुचित तथा नि दनीय समस्या है। यो झनासक्ति निस्स्वाथ भाव एव करत यबुद्धि से ही झ्पने कहते पर का झनुष्ठान करता है वह श्राद्श मनुष्य है श्रौर गीता ने उसके लिए प्राय सात्विक शब्द व्यवहत किया दे। इस बात को सिद्ध करने के लिए बहुत से उनादइरण दिये जा सकते हैं कि गीता ने कम के श्रनुष्ठान का दी उपदेश दिया है न कि सन्यास का । उसी झजेन ने जिपने श्रारम्भ में युद्ध न करने का निश्चय कर किग्रा था ्रौर जो शोक एव लज्जा से सबिग्न होकर एक. तरफ़ बेठ गया था न योस्त्य इति गोबि नमुक् या. तूष्णीं बभूव हु गीता के उपदेश के घ्न्तमें भगवान्‌ को निस्तलिखिन शब्दों सें विश्व दिलाया -- नष्टो मोह स्सतिलंब्धा त्वव्प्रसादान्मया5च्युत । स्थितो.स्सि गतसदेदद करिष्ये वचन तव ॥ देंदे ॥ है विश्व के श्र्नात उपदेष्टा भगवान्‌ अच्युत झापके अनुम्रह से मेरा मोह नष्ट हो गया है सुखे पुन स्खति हो गई है से श्रत्र सदेहरहित हो वी गया हूँ मे श्रापकी झाज्ञा का पालन कुरूंगा। इस बात की करपना करना सी श्रप्तम्भव है कि जिप भाषण ने प्रतिपक्तियों के साथ निण॒याप्मक युद्ध में प्रदत्त कर महावीर श्रजुन को सेनापतित्व झह




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