प्राचीन भारतीय शिक्षा व्यवस्था एवं महिलाओं की शैक्षणिक स्थिति | Pracheen Bharteeya Shiksha Vyavastha Avam Mahilawon Ki Shaikshanik Sthiti

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राप्ति होती है। विद्या से विहीन व्यक्ति पशु के समान माना गया है।” मनुष्य के जीवन में विद्या अथवा ज्ञान का विशिष्ट स्थान है। विद्या के बिना मनुष्य का व्यक्तित्व संकुचित और जीवन बोझिल हो जाता है। आलोच्य काल में विद्याध्ययन के लिये श्रम अपेक्षित था। तपोदत्त ब्राह्मण में तप से विद्या प्राप्त की थी और इन्द्र ने प्रकट होकर कहा कि बिना अध्ययन विद्या प्राप्ति का यत्न बालू से पुल बनाने के समान ही है।” इत्सिंग ने लिखा है कि बौद्ध धर्म के अन्तर्गत शिक्षा का विशेष स्थान था क्योंकि शिक्षा की अवहेलना से धर्म प्रसार सम्भव नहीं था।“ शिक्षा के महत्व को बताते हुये कहा गया है कि शिक्षा माता की भांति सन्तान की रक्षा करती है, पिता की भांति कल्याण साधन में लगाती हैं एवं पत्नी की भांति आनन्द तथा सुविधा प्रदान करती हैं। इससे ऐश्वर्य, वास्तविक प्रकाश तथा कीर्ति की. उपलब्धि होती है, अर्थात्‌ विद्या कल्पलता की भांति सब कुछ प्रदान करती है। विदेश. गमन अथवा यात्रा के समय शिक्षा हमारी सहायता करती है। कल्हण की राजतरंगिणी से भी उपर्युक्त विचारों का अनुसमर्थन होता है।* अज्ञानता अन्धकार के समान है*। शास्त्र एक ऐसी दिव्य दृष्टि है, जिससे भूत, भविष्य और वर्तमान का अनुमान किया जा सकता है। इसके अध्ययन के बिना विशाल नेत्रों के होते हुए भी मानव अन्धे के ही समान है।* अशिक्षित बालक उसी तरह शोभा नहीं पाता जैसे हंसों के मध्य बगुला।* शिक्षा के द्वारा विकसित बुद्धि ही पशु और . मनुष्य में अन्तर लाती है। विद्या लौकिक और पारलौकिक समस्त सुखों को देने वाली है, गुरूओं का भी गुरू है ऐसा माना गया है।” पश्चिमी विचारकों का भी यह मत रहा है कि शिक्षा ही नैतिक तन्तुओं को विमल और पुष्टि करती है जिससे व्यक्ति के आचरण एवं व्यवहार परिमार्जित एवं परिष्कत होता है।*




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