प्राचीन भारत में सामाजिक एवं राजनैतिक अवधारणा | Pracheen Bharat Me Samajik Avam Rajnaitik Avadharana

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Pracheen Bharat Me Samajik Avam Rajnaitik Avadharana by कु. ममता देवी - Kmr. Mamta Devi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वैदिक कालीन समाज :-.......... न धर्म, दर्शन, नीति, आचार-व्यवहार आदि के साथ-साथ यदि हम आरम्भिक काल के सामाजिक स्वरूप को भी जानना चाहें तो सर्व प्रथम वेदों का आश्रय ग्रहण करना पड़ेगा। इन वेदों में भी प्रथम तीन वेद ऋग्वेद, यजुर्वद और सामवेद ऐसे हैं. जिनमें अन्य विषयों के साथ-साथ तत्कालीन सामाजिक संरचना के सूत्र भी प्राप्त होते हैं। यद्यपि वेदों में देवताओं की स्तुतियां और यज्ञ-विधानों का ही मुख्य रूप से वर्णन किया गया है, तथापि उसी समय से परिवार समाज की प्रारम्भिक इकाई के रूप में प्रतिष्ठित हो चुके थे और इन परिवारों में पितृ सत्तात्मक व्यवस्था का स्वरूप स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगा था। पिता . परिवार का मुखिया होता था और माता उस परिवार की सजूचालिका।. पिता को बाहर रह कर परिवार का संचालन करने के लिये श्रम करना होता था जबकि माता अन्दर रह कर घर का संचालन करती थीं। वह. स्वरूप यद्यपि तब बहुत स्पष्टता के साथ वर्णित नहीं है किन्तु तब के समय में इसके संकेत अवश्य हैं। समाज को तब के समय में वर्ण व्यवस्था के अन्तर्गत निरूपित किया गया था। ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र के रूप में समाज का स्वरूप संकेतित है यद्यपि यह संकेत अधिक स्थानों पर न होकर बहुत ही कम मात्रा में है। जैसे कि ऋग्वेद के पुरुष सूक्त में उस परम सत्ता के मुख से ब्राह्मण, बाहुओं से क्षत्रिय, . . उरुओं से वैश्य और पदों से शूद्रों की उत्पत्ति का वर्णन किया गया है।”. इस वर्णन से यह संकेत किया जा सकता है कि प्रमुख रूप से तब का. . समाज इन चार वर्णों के रूप में व्यवस्थित हो चुका था, यद्यपि ऋग्वेद. . में इसके अतिरिक्त वैश्य और शूद्र का प्रयोग नहीं है। अधर्ववेद में .... अवश्य कई बार वैश्य और शूद्र शब्द का प्रयोग किया गया है।* आवाज जा. 9. ऋकू (दृष्टव्य पुरुष सूक्त) कि पर : रे. थे. (शपथ सर




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