भारतीय ज्योतिष का इतिहास | Bharatiy Jyotish Ka Itihas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रारम्भिक बातें ने इसे २७ ही दिन माना होगा । इसलिए चन्द्रमा के एक चक्कर को २७ भागों में वॉटना गौर उसके मार्ग में २७ चमकीले था सुगमता से पहचान में आनेवाले तारों या तारका-पुजो को चुन लेना उनके छिए स्वाभाविक था । ठीक-ठीक चरावर टूरियो पर तारो का मिलना असम्भव था, क्योकि चन्द्रमा के मार्ग में तारो का जडना मनृष्य का काम तो था नहीं । इसलिए गारुभ में मोटे हिसाव से ही वेव हारा चन्द्रमा की गति का पता चल पाता रहा होगा, परन्तु गणित के विकास के साथ्र इसमें सुधार हुआ होग! भौर तव चन्द्र-मागें को ठीक-ठीक वरावर २७ भागों में वाँटा गया होगा । चन्द्रमा २७ के बदले लगभग २७३ दिन में एक चक्कर लगाता है, इसका भी परिणाम जोड लिया गया होगा । चन्द्रमा के माग॑ के इन २७ वरावर भागों को ज्योतिष मे नक्षत्र कहते हूं | साधारण भाषा में नक्षत्र का केवल तारा है । इस झाव्द से किसी भी तारे का वोघ हो सकता हैं ।. आरम्भ में नक्षत्र तारे के लिए ही प्रयुक्त होता रहा होगा । परन्तु चल्द्रमा अमुक नक्षत्र के समीप है कहने की वार-वार पड़ती रही होगी । समय पाकर चन्द्रमा और नक्षत्रों का सम्बन्ध ऐसा घनिष्ठ हो गया होगा कि नक्षत्र कहने से ही चन्द्र-मार्ग के सभीपवर्ती किसी तारे का ध्यान आता रहा होगा । पीछे जब चन्द्रमागं को २७ वरावर भागों में वाँटा गया तो स्वभावत इन भागों के नाम भी समीपवर्ती तारो के अनुसार अद्विनी, भरणी, कृत्तिका, रोहिणी, आदि पड गये होगे । ऋग्वेद में कुछ नक्षत्रों के नाम आते हे जिसमे पता चलता है कि उस समय भी चन्द्रमा की गति पर ध्यान दिया जाता था' । उदयकालिक सूये कौषीतकी न्नाह्मण में इसका सूक्ष्म दर्णन हे कि उदयकाल के समय सूर्य किस दिला में रहता हूं क्षितिज पर सूर्योदय-विन्दु स्थिर नही रहता, क्योकि सुर्य का वार्षिक मार्ग तिरछा हूं और इसका आधा भाग के उत्तर भाग में पडता हैं, आधा दक्षिण में ।. कौपीतकी न्नाह्मण ने सूर्योदय-विन्दु की गति का सच्चा वर्णन दिया हैं कि किस प्रकार यह विन्दु दक्षिण की ओर जाता है, कुछ दिनो तक वहाँ स्थिर- सा जान पडता हूं और फिर उत्तर की ओर वढता हू ।. यदि यज्ञ करनेवाला प्रति * १०८५३ ४९२३३




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