फटा पत्र | Phata Patra

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Phata Patra by गोविन्दवल्लभ पन्त - Govindvallabh Pant

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फटा पत्र र्टट अज्ञापति देडमास्टर की नजर बचाकर चुटकियों में वह सब कुछ बाज़ार जाकर ले आता था यद्द दूसरा कारस था | सिस्टर सी० पी०+ सनलाइट साहब उस सिडिल स्कूल के देडमास्टर थे । चसड़ा गेहूुँए रंग का । सच १६१२ में इंट्रेंस मे फ्रेल हुए फिर पढ़ा मद्दीं पर प्राइवेट परीक्षा पास करने की झाशा कर उसी स्कूल में असिस्टेंट सास्टर हो गए। कुछ मह्दीवे बाद विवाह किया छोर कुछ वर्ष बाद अपने शुख की बदौलत देडसास्टरी का भार खिर पर रखने को सिल गया । अर्गरेज पादरियों के साथ संबंध होने के कारण खुब अच्छी ंगरेजी लिखते और बोलते थे । बेश और भोजन भी बैसा दीथा। तबे पर सिकी रोटियाँ और दाल उनके पिताजी ही छोड़ चुके थे दे सिर की माँग पदलून की क्रीच और बूट की पालिश पर विशेष ध्यान रखते थे । कोट के रंग की टाई पदनते थे उनके चश्मे का नंबर शून्य था और वह अपने सौभाग्य की संख्या सच बताते थे । उसकी बेठक में वैठने के लिये कु्तियाँ थीं । बैठक के सामले की दौवाल में राफेल की शिषु और सातार की अच्छी बड़ी वसवीर लटकती थीं । यद्द उन्हें स्वदेश लौटते समय एक पादरी साइ्ब उपडार दे गए थे | इसके अतिरिक्त और भी कई छोटे - बड़े झाक़ति झौर प्रकृति के चित्र उनके यहाँ थे । मेज के पास रिवॉर्लिचग बुकशेल्फ़ था । उसमें बाइबिल शेक्सपियर




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