प्राचीन भारत की संस्कृति और सभ्यता एज ऐतिहासिक रूपरेखा | Prachin Bharat Ki Sanskrati Aur Sabhyata
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.62 MB
कुल पष्ठ :
398
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about दामोदर धर्मानंद कोसांबी - Damodar Dharmananda Kosambi
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फलस्वरूप समाजवाद अथवा अन्य किसी लक्ष्य तक जल्दी से पहुंचा जा सकता है। यदि तव भी देश पहले की तरह ही समाजवाद से कौसो इर रहता है तो फिर इस व्यग्योक्ति मे कुछ सचाई अवश्य होगी कि हमने सही दिशावाला माग नहीं पकडा है । इसके बावजूद कट्टर-से-कट्टर आलोचक को भी यह स्वीकार करना होगा मिं स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद प्रगति हुई है फिर वह जितनी अधिक होनी चाहिए थी या हो सकती थी उतनी भले ही न हुई हो । प्रिटिश शासन के अन्तिम दिनों से जिन अनावश्यक मातव निर्मित अकालो के कारण बयाल और उडीसा में लाखों लोगो की जानें गयी वे अज उतने की अयथाथ लगते हैं जितने कि औपनिवेशिक कुशासन के जमाने के अय भयावह दु स्वप्न १ २ आधुनिक शासक-वग शहरी मे आवाद भारतीय पूजीपति-वग की सबसे स्पष्ट विशेषता है-- विदेशी प्रभाव । आजादी के बाद चौदह साल गुजर गये फिर भी भारत मे प्रशासन वडें व्यवसाय और उच्च शिक्षा की भाषा आज भी भअग्रेजी ही है । इस स्थिति को बदलन के ठोस प्रयास नहीं हुए यद्यपि असमथ समितियों मे मेक इरादे के प्रस्ताव पाम किय॑ हैं । वुद्धिजीवी न केवल अपने वस्त्रों मे बल्कि उससे भी वढकर साहित्य और कला मं नवीनतम ब्रिटिश फशन की नकल करता है। आधुनिव उप यासा और क्याओ की रचना देशी भापाआ म भी विदेशी नमूना अयवा विदंशी प्रेरणा पर भाघारित है । भारतीय नाटक दो हजार साल से भी अधिक पुराना है किन्तु आज के भारत का शिक्षित रगमथ और उससे भी वढकर भारतीय सिनेमा दूसरे देशो के रगमच और सिनेमा की नकल करता है । भारतीय काव्य मे थह विदेशीपन कुछ कम है यद्यपि विपम- वस्तु और मुक्तछ दा के चुनाव में यह विदेशी प्रभाव स्पष्ट दिखायी देता है। इस बुद्धिजीवी वग ने युरोपीय महाखण्ड की साहित्यिक और सास्कृतिव परम्परा के रत्नकोप की प्राय उपेक्षा ही वी है। इस निधि से इनका सम्पक अप्रजी माध्यम की घटिया पुस्तकों तक ही सीमित रहा है। दरअसल भारत मे पूजीपत्ि-वग के सम्पूण ढाचे का विकास वाह्य शक्तियों से प्रभावित हुआ है । देश में सामन्ती और सामन्ती पुव काल की सम्पत्ति का अपार सचय था जो सोधा आाधुनिव पूजी में नहीं बदला । इसके काफी बडे अश को अप्रेंज अठारहवी ओर उनीसवी सदी में लूट ले गये । यह धन जब इर्ग्लण्ट पहुचा तभी उस देश में महान ओद्योगिक ऋ्राति हुई और तभी यह धन यानि उत्पादन से जुडवर सही अथ मे आधुनिक पूजी में रूपान्तरित हुआ । इस परिवतन के वारण भारत वा अधिक शोषण होन लगा क्याकि प्रशासन और सनिव प्रवघ वा बोस लगातार बढ़ता ही गया । पेंशन लामाश तथा ब्यजि को पया मधिवतर इग्नैण्ड वो ही जाता था । विजेता ही भार्रत के कर्चि मात की कॉमत पर्स बरत ये । नील नशा जन सेवहासिकं परिप्रेदप / ५ कट + नि
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