सरल पारिवारिक चिकित्सा | Saral Parivarik Chikitsa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Saral Parivarik Chikitsa by अज्ञात - Unknown

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about अज्ञात - Unknown

Add Infomation AboutUnknown

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
फालेरा या हैजा । ष्् है । अकड़नकी बज्दसे पेरमें बेहद दुर्दे रदनेपर भी यह उपयोगी है । सिकेलि-कोर ३८ ६४, ३०-शरीर बर्फकी तरह ठरडा, परन्तु रोगी वबदनपर कपडा नहीं रखना चाहता; त्वयाके नीचे कीड़ा रेंगनेकी तरह सुरखुरी मालूम होना; ऐंठन। यदि अकड़न या ये ठनमे कयूप्रमसे छाभ न हो तो यह दवा देनी चाहिये, पर पे ठननें दोनों ददाओंमें प्रभेद है । क्यूप्रममें संकोचनी पेशी्मे ( 11607 फ्पउले ) मे अकड़न होती है. अर्थात्‌ हाथ-पेरकी अंगुलियाँ सामनेकी ओर रेढ़ी पड़ ज्ञाती हैं, पर सिकेलिमें प्रसारक पेशी्में (6४/०050ए शाषाइए6 ) में ऐंठन होती है । इसलिये अँगुदियाँ पीछेकी ओर रेढ़ी पड जाती है। छाती पठन होकर रोगीकी साँस रुक ज्ञाना चाहती हे । कार्बो-वेज ३०, २००--यह हिमांग अवस्था अथात्‌ शीत भा जानेकी प्रधान दवा है । नाड़ी लोप, समूचा शरीर . ठण्ड, साँसतक ठणडी, पेर फूलना, हेजाकी अन्तिम अवस्था / के उपसर्गामि यह उपयोगी हैं। चेहश मलिन, आँखे गड़ह में घेंसी, शरीर नीछा,; साँस लेने और छोड़नेकी चाल तेज, सेगी हवा करने कहता है। हमरेजिक कालेगा अथांत्‌ जिसमें खूनके दस्त के आते है, उनमें कार्वोवेज अधिक फायदा करता है। यदि पलोपधिक मतसे फेलोसेडका




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now