यजुर्वेद | Yajurved

Yajurved  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न्क् पू० 1 शध्याय 3 ] १ ग्राददेधध्यरदृतं देनेश्यइन्द्रस्य बाहुरसि दक्षिण सहसभूष्टि शततेजा नायुरसि तिमतेजा द्विपतो ढाध ॥२४॥। प्रथिविं देवयजन्थोपध्यास्ते मूल मा हिसिप ब्रज गच्द् क गोछ्ठान वर्षतु ते यौर्वधान देव । सवित परमस्या प्रथिव्या झतिन पाशेर्योडस्मा-टट छ्रि य च वय ट्रिप्मस्तमतो मा मौके ॥२५ ॥। हे पुरीडाश ! तुम भयभीत न होश ॥ तुम चचल मत होश्ों स्थिर ही रहो यज्ञ का कारण रूप पुरोडाश भरमादि के ढकने से वचे । इस प्रकार यजमान की सन्तति कभी हु जादि में नहीं पड़े । भर गुली प्रचालन से छुने हुए जल ' में तुम्हें ज्रित नामफ देवना की दृष्ति के लिए प्रदान करता हूँ, में तुम्द द्वित नामक देवता की संतुष्टि के लिए देता है, में तम्दें एकत नामक देवता की तृप्ति के निमित्त देता हूं ॥२३॥ हे खुरपी कुदाली ' सवित्तादेर की प्ररणा से श्रश्चिनोडुमार की भुनाधों से श्रौर पूषादेवता के हाथो से तुम्दे प्रदण करना हूं । देयताश्ा के तृप्ति साधन यज्ञानुप्टान में बेदी खनन कार्य के लिए मैं तुम्हे ्रदण करता हूँ। है खुरे' तुम इन्द्र के दक्षिय बाहु के समान दो । तुस सददखों शवों श्ौर राच्षसों के नाश करने में ध्रनेक तेजों स सम्परन हो । तुम में थ थु के समान वेग है। वायु असे झग्नि के सदायव होकर उ्वालाओं की तीदण करते हैं चैसे ही खनन फर्म में यह शपय तीघ तेज थाला हैं श्रौर श्र कमो से ट्रंप घरने वाले श्रमुरो का विनाशक है 9२४॥ है थिवी तुम देवताओं के यश योग्य हो । तम्हारी प्रिय संतसि सूप घ्ौपधि के दूण मुलादि वो में नष्ट नह्टीं करता हूं । ४ पुरीप सुम गौची के न्बिस स्थान गोष्ट को प्राप्त दॉधनो 1 हे बेदी ! सुम्दारे लिए, रचग लोक के श्रमिसानी देवता सूयं, जल वी बृष्टि करें । बृष्टि से खनन द्वारा उत्पन्न पीड़ा की शान्ति हो 1 है सबंप्ररेक सचित'देय जो ध्यन्ति इम से द्रेप परे अथवा दम जिससे ट्रंप करें, ऐसे दोनों प्रकार के वेरियों को दुम इस शरथियी की भन्तर्समि। रुप नरक से डाली धर सेकर्डो बंघनों में बाँध लो 1 उस




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