महादेवी का विवेचनात्मक गद्य | Mahaadevii Kaa Vivechanaatmak Gadya

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Mahaadevii Kaa Vivechanaatmak Gadya by गंगाप्रसाद पाण्डेय - Ganga Prasad Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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महादेवी का विवेचनात्मक गद्य सेर पानी तोला है श्राद आदि नाप-तोल न बताकर भी हम नदी का ठीक परिचय दूसरे के हृदय तक पहुँचा देते हैं | सुननेवाला उस नदी के ही नहीं उसके शाश्वत सौंदर्य के मी प्रत्यत्त पाकर एक एसे श्रानन्द की स्थिति में पहुँच जाता है जहाँ गणित के अंकों में बँधी नाप-जोख के लिए स्थान नहीं। मस्तिष्क ओर हृदय परस्पर पूरक रहकर भी एक ही पथ से नहीं चलते । बुद्धि में समानान्तर पर चलनेवाली भिन्न भिन्न श्रेणियाँ हैं ओर श्रनुभूति में एकतारता लिये गहराई । ज्ञान के ज्षेत्र में एक छोटी रेखा के नीचे उससे बड़ी रेखा खींचकर पहली का छेटा ओर भिन्न अस्तित्व दिखाया जा सकता है | इसके असंख्य उदाहरण, विज्ञान जीवन की स्थूल सीमा में और दर्शन जीवन की सूह्म श्रसीमता में दे चुका है | पर अनुभूति के क्षेत्र में एक की स्थिति से नीचे और श्रधिक गहराई में उतरकर भी हम उसके साथ एक ही रेखा पर रहते हैं। एक वस्तु को एक व्यक्ति श्रपनी स्थिति-विशेष में श्रपने विशेष दृष्टिबिन्दु से देखता है, दूसरा अपने धरातल पर अपने से और तीसरा अपनी खोमारेखा पर श्रपने से । तीनों ने वस्त॒विशेष का जिन विशेष दृष्टिकाणों से जिन विभिन्न परिस्थितियों मे देखा है वे उनके तद्विषयक ज्ञान का भिन्न रेखाओं में घेर लेंगी | इन विभिन्न रेखाओं के नीचे शान के एक सामान्य धरातल की स्थिति है श्रवश्य, परन्तु वंह श्रपनी एकता के परिचय के लिए ही इस अनेकता के सभाले रहती है। | अनुभूति के सम्बन्ध में यह कठिनाई सरल हो जाती है | एक व्यक्ति अपने दुःख के ब्रूत तीत्रता से श्रनुभव कर रहा है, उसके निकट ६




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