श्री कृष्ण | Shriikrishn
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
75
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ६ )
पहले वही हेढ ते | कुछ खाते, कुछ लुह़काते, फिर खेलते
कूदते अपने घर आते ।
गोइुल की ओरतों ने जवर देखा कष्ण के मारे दही,
माखन मिलना मुश्किल है तो वे उसे छींकों पर रखने
लगीं | इतने पर भी उनकी बचत न होती थी। श्रीकृष्ण
3ट, पत्थर, ख।ट, मोडा जा मिलता उस पर चढ़कर छींके
से दहेडी उतार लेते ओर खा जाते | चलते समय दहेड़ी
भी फोड जाते |
इसी तरह एक दिन श्रीकृष्ण ओर बलराम दुसरे
ग्वाल-बालों के संग एक ग्वालिनी के घर में घुस गये |
ग्वालिनी घर में नहीं थी। इधर-उधर देखा | उपर
ताका | दही, माखन की दहेडियां बहुत ऊंचे पर रखी
थीं। सब सोचने लगे--इतने ऊँचे से माखन केसे उड़ाया
नाय । इतने में कृष्ण बोले--“ठहरां, ठहरो, मेंने तरकीब
सोच ली । एक लड़का उटकुरुवां घोड़ा बन जावे | उसके
ऊपर दूसरा घोड़ा बनकर बेठ जावे | उसके ऊपर तीसरा |
फिर में सब से ऊपर चढ़कर दहेड़ी उतार दूँगा।” बस,
सब लड़के एक दूसरे पर घोड़ा वनकर बेठ गये। सब
के ऊपर कृष्ण खुद चढ़कर छींके तक पहुँच गये | बलराम
ने बगल में खड़े होकर सहारा दिया। दो दहेडी नीचे दे दी ।
एक पटक दी । एक छींके पर ही टेढ़ी कर दी । दही गिरने
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