जैन साहित्य का ब्रिहद् इतिहास | Jain Sahitya Ka Brihad Itihas

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : जैन साहित्य का ब्रिहद् इतिहास  - Jain Sahitya Ka Brihad Itihas

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about गुलाबचन्द्र चौधरी - Gulabchandra Chaudhary

Add Infomation AboutGulabchandra Chaudhary

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
प्रकरण १ प्रास्ताविक जैन काव्य-साहित्य से हमारा तात्पये उस विशाल साहित्य से है जो काव्य- शखरसम्भत विधि-विधान फो यथासम्भवे मानकर महाकाव्य, कथा ( प्राकृत में काव्य को कथा नाम से कहते हैं) तथा काच्य की अनेक विधाओं मे अर्थात्‌ दद्य काव्य एवं अव्यकाब्य--शास्त्रीयकाव्य, गद्यकाव्य, चम्पूकाब्य, दूतकाव्य, गीति- काव्य आदि के रूप में लिखा गया हो । इसे हम पमुखं तीन रूण्डों में विंभक्त कर विवेचन करंगे। पहले खण्ड में पोराणिक मह्दाकाव्य और सभी प्रकार की कथाएँ रहेँगी। द्वितीय खण्ड मे ऐतिहासिक साहित्य यथा ऐतिहासिक काव्य, प्रबन्ध-साहित्य, प्रशस्तियों, पद्टावल्यों, प्रतिमा-लेख, अन्य अमिलेख, तीथंमालाएँ, विश्तिपत्रादि का विवेचन होगा। तृतीय खण्ड में लब्ति बाझाय अर्थात्‌ शाज्जीय मद्दाकाव्य, गद्यकाब्य, चम्पू, नाटक आदि अलकार तथा रस-शैली पर लिखा हुआ साहित्य समाविष्ट होगा । यह विशाल साहित्य अनेक माषाओं में चला गया है पर प्रस्तुत भाग में भाषा की दृष्टि से हमने प्राकृत तथा संस्कृत में उपलब्ध को ही ग्रहण किया है। अपभ्रश या अन्य भाषाओं मे उपलब्ध इस प्रकार का साहित्य अगले भागों का विषय होगा । सबप्रथम जैनों के परम्परा सम्मत वाद्य में 'काव्यसाहित्य' की क्‍या स्थिति है यह जान लेना परमावश्यक है| भगवान्‌ महावीर के समय से छेकर विक्रम की २० वीं शताब्दी के अन्त तक छगमग २५०० वर्षों के दीघंकाल में जैन मनीषियों ने प्राकृत ओर सस्कृत के जिस विपुरू वाछाय का निर्माण किया है उसे सुविधा की दृष्टि से, आधुनिक विद्वानों ने, पुरानी परिभाषाओं का ध्यान रखकर प्रमुख तीन मागो मे बय हैः पहला आगमिक, दूसरा अनुआगमिक और तीसरा आगमेतर | आगमिक साहित्य आज हमें आचाराग आदि ४५ आगमों तथा उनपर ल्खि विशाल टीकासाहित्य- नियुक्ति, चूणिं, माष्य और टीकाओं के रूप में उपलब्ध है। अनुआगम साहित्य दिगम्बरमान्य शौरसेनी आगर्मो--कखायपाहुड, षटखण्डागम तथा ऊुन्दकुन्द के अन्थों के रूप मे पाया जाता है। इन दोनों प्रकार का साहित्य इस चूहद्‌ इतिहास के पूव मार्गों में प्रकाशित हो चुका है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now