मोरी धरती मैया | Mori Dharati Maiya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
57 MB
कुल पष्ठ :
216
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)জ্বাল দাহ अँसुआ पोंछे,
कौनं मोरे दुखवा टारे 1
इन सूखे हाड़न पी कीनें,
रो रो करके असुआ ভাত |
~~ + + `
धरती मेवा नैते मोरे,
अँसुआ पोछि--दुखवा टारे ।
मोरे হুল লুষ্ হাতল দু
रो रो तेंनें अँसुवा ভাই |
धरती मंया हो ।
माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक प्रिय होती है? । चिड़िया भी
अपने वतन के लिए रोती रहती है ।
रीवा के कवि हाफिज महमूद की धरती मैया की वच्दता में लिखी हुई
निम्बस्थ कविता यहाँ विज्येप प्रचलित
धरती माता तुम धन्न घन्न |
वेत्या हैं सबका बस्त्र अन्न ॥
वरखा रितमा पानी बरसे |
घरती मा हरियारी हर से ॥॥
गरमी भागं डरिके तड़ से ।
| = = , ` निकर किमान अपने घर से ।
जोते बोव॑ तबः फेर अन्न | |
धरती माता तुम घन्न घन्न
|
कउनउ मा कोदों जोन्हरी श्रौ, `
अरहर का बीज. बोवाय दिहि्नि !
कउनउ मा छिठुआ घान ভীত,
कउनऊ मा लेव लगाय लिहिन ।
कह + अधि সিল यनननलनन-+५ ८
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिं गरीयसी ।
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