मोरी धरती मैया | Mori Dharati Maiya

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Mori Dharati Maiya by श्रीचन्द्र जैन - Srichandra Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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জ্বাল দাহ अँसुआ पोंछे, कौनं मोरे दुखवा टारे 1 इन सूखे हाड़न पी कीनें, रो रो करके असुआ ভাত | ~~ + + ` धरती मेवा नैते मोरे, अँसुआ पोछि--दुखवा टारे । मोरे হুল লুষ্ হাতল দু रो रो तेंनें अँसुवा ভাই | धरती मंया हो । माता और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक प्रिय होती है? । चिड़िया भी अपने वतन के लिए रोती रहती है । रीवा के कवि हाफिज महमूद की धरती मैया की वच्दता में लिखी हुई निम्बस्थ कविता यहाँ विज्येप प्रचलित धरती माता तुम धन्न घन्न | वेत्या हैं सबका बस्त्र अन्न ॥ वरखा रितमा पानी बरसे | घरती मा हरियारी हर से ॥॥ गरमी भागं डरिके तड़ से । | = = , ` निकर किमान अपने घर से । जोते बोव॑ तबः फेर अन्न | | धरती माता तुम घन्न घन्न | कउनउ मा कोदों जोन्हरी श्रौ, ` अरहर का बीज. बोवाय दिहि्नि ! कउनउ मा छिठुआ घान ভীত, कउनऊ मा लेव लगाय लिहिन । कह + अधि সিল यनननलनन-+५ ८ जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपिं गरीयसी ।




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