शृंखला की कड़ियाँ | Shrankhala Ki Kadiyan

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Shrankhala Ki Kadiyan by श्री महादेवी वर्मा - Shri Mahadevi Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन न. यह में अधिक निर्मम और झुष्क आर्थिक दृष्टि से अधिक स्वाधीन सामाजिक क्षेत्र से अधिक स्वच्छन्द परन्तु अपनी निर्धारित रेखाओं की . सट्लीणं सीमा की चन्दिनी है । उसकी यह धारणा कि कोमलता तथा भावुकता ऐसी लौंहश्डखलाएँ हैं जो देंखने तथा सुनने में ही कोमल जान पड़ती हैं पहनने में नहीं उसके प्रति पुरुष समाज के विवेक और हदय- दीन व्यवहार की प्रतिक्रिया मात्र है । ससार में निरन्तर स्घेमय जीवन वैसे ही छुछ कम नीरस तथा कट नहीं है फिर यदि उससे सारी सुकु- सार भावनाओं का माधुय्य॑ का बहिष्कार कर दिया जाय तो असीम साहसी ही उसे वहन करने में समर्थ हो सकेगा इतर जनो के जीवन को तो उस रुक्षता का भार चूर-चूर किये बिना न रहेगा । स्त्री की कोम- सदादयता और सहानुभूति समाज के सन्तप्त जीवन के लिए चीतल अनुेप का कार्य करती है इससे सन्देह नहीं अर्वाचीन समाज में या तो ख्रियो में ख्रियोचित स्वतन्त्र विवेकसय व्यक्तित्व का विकास ही नहीं हो सका है या उनकी प्रत्येक भावना में न्व॒रित्र में कार्य में पुरुष की भावना चरित्र और कार्य की प्रतिकृति झाकती र्‌ददती है । इसी से एक का निरादर है और दूसरी से अविराम सच्धर्प । अपनी समस्त दाक्तियो से पूर्ण महिमामयी महिला के सम्सुख किसी का सस्तक आदर से नत हुए बिना नहीं रह सकता यह अनुभव की चस्ठु है तके की नहीं । उपेश्वा तथा अनादर वहीं सम्भव है जहाँ उपे- क्षित और अनाद॑त व्यक्ति उपेक्षा और अनादर करनेवाले के समकक्ष था उससे न्यून होता है । परन्तु ख््री के जिस गरिमामय व्यक्तित्व को का नाम मिला है तथा जिसके छिए मनु को यत्रेतास्तु न पूज्यन्ते कीं कड़ियाँ




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