श्री जीवंधर चरित्र | Shree Jeewandhar Charitra
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
132
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)९
तेथी. रानाओना.विषयमां जे कंडं इ के जनिष्ट कर्मं करषामां
जावे, ते मानो फे षधा छोकनी सथे इष्ट फे अनिष्ट कटवा
जें छ. ४६. प रति जे राजदरोहना कएनार् @, ते बधा द्वोहना
उत्पादक छ; शं राजद्रोही पंच महा पोना करार नथी ?
अवकष्य छ}. अथौत् ते हिसा) जठ, चोरी, शीर अने परिग्रह
ए पांच महापा फेनो करनार. 8, ४७. आ छोकमां राजा लोक
देव अने जीवधारी वन्नेनी रक्षा करे छे; परंतु देबता पोते पोतानी
पण रक्षा करता नथी तेथी सिद्ध छे के, राजाज सवो देवता छे,
४८. जने वढी सांमछो,-देवता तो फक्त एक देवदरोही मनु-
प्यनेज मारे छे; परंतु राजा तो राजद्रोहीना वंशने बल्के वंशथी
उल्टा बीजा संबंधी ठोकोनो-पण तत्काछूज नाश करे छ, ४९.
धनवान पुरुषोना जीवननो उपाय कटनार जने शमनो नाश
करनार राजाओनी অঞ্জিলী समान सेवा करवी जोईए. जेम
अभिनी जो अनुकूछ थरेने सेवा करवामां जावे छे तो तेथी
जीवननो उपाय भोजनादि थाय छे अने जो तेनाथी विरोध
करवामां जावे छे तो नाशनुं साधन थाय छे; तेबीजरीते হালাজা
साथे अनुकूछ्ता मतिकूछता करवाथी हानि थाय छे.” ५०
धृमैदतत मंत्रिनुं एवुं धर्मयुक्त वचन पण ते दुष्ट বানা
काष्ंगारने ममेमेदी के हृदयविदारक र्यं अथात् तेने
बहुज खोट रागु, सख छे के पिदज्यरदागने दूध पण तीखुं
-लागे:छे, ५१, तेणे कृतप्नतादि दोष अने शुरद्रोह, अने वषा-
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