संगीत महासती चन्दनबाला | Sangeet Mahasati Chandanbala

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Sangeet Mahasati Chandanbala by चन्दनमुनि जी - Chandan Muni ji

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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माने जा संकते हैं। क्योंकि मुनि जी कबीर की तरह शब्द को जाति न देख कर उसकी प्रमिव्यक्ति को सामर्थ्य देखते हैं, प्रतः दे कबीर के समान ही नानाविध छात्दों का अ्रयोग करते हैं। एक तरफ तो ये जघन्य, परिहर्तंब्य, प्राराध्य जैसे संस्कृत शब्दों का प्रयोग करते ई, दूये भोर गौर, हराम, साफ़ जैसे उद्‌ शब्दों के प्रयोग में भो उन्हें हिचक नहीं है। सौदा, ओढ़नो, देया जैसी लौकिक शब्दावली भी उनकी भाषा का मस्त गार करती है। विद्ये- पता यह है कि भाषा पात्रानुकुल रहतो है। एक व्याकुल-सी समान्य नारी की भापा देखिए - हाये | हाथ री ! देपा ! सेया । हाथ ! हाथ! मेरे भगवात। दूमरी ओर चन्दनवाला की गम्भीर वाणी का गाम्भोर्य है-- चिन्तन मनन तया झनुशीलन, मुझफो कर लेना ३ प्राज। शतानीक की उदण्ड वाणी का भी एक उदाहरण देख लें। न्याय पूछने का नहीं, हे नरपति ! श्रव वक्त । मेरी सेना माँगती, चम्पापुर का रक्ता राज्य बढ़ाना न्याय है, घाक्ी सब श्रस्याय पुटं प्षिवा फोई नही, इसका प्रस्य उपाय। গী चन्दन मुनि जौ सोधो-सादी वातत कटने के विश्वासी है, भरतः वे कविता-फामिनी को श्रलंजृत करने के प्रयास से प्रायः दूर ही रहते हैं, परन्तु उनकों कविता स्वयं श्र॒लंकृत होतो रहती है। ` कितनी सुन्दर है यमक की छटा-- इस घर में उस घर में श्रन्तर वही जानता हैं। श्रन्तर मे श्रन्तर हो जितके, ध्रन्तर वही मानता है। उपमा का श्रपना ही सीन्दयं है-- पक्षी उड़ जाते हैँ, जेसे सुनकर गोली को प्रावान्‌ । भंगं गह वानरं सेनी, लगा लीजिए श्रव अन्दजं । ‡ तेरह :




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