सरल जैन रामायणा - भाग 1 | Saral Jain Ramayan - (vol - I)
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
378
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about कस्तूरचंद नायक - Kasoorchand Nayak
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १४ )
उक्तियों, सातिशय अलंकारों;नीतियों के कारण, तुलसी-रामाथरणं _
को ख्याति प्राप्त है, वह सब उन्हे स्वयंभू कविकी जेन-रामायण
से प्राप्त हुईं है। यदि स्वयंभू रामायण प्रकाशित हो जाय तो
पाठक यदह सहज दी जान सकेंगे कि तुलसी-रामायणमे জী
कुछ उत्तमत्ता है. उसका अधिकाश श्रेय स्वयभू कविको है।
यदि तुलसीदास जी अपने काव्यके कथानक के लिये भी इस
ग्रन्थका आधार रखते तो उनका काव्य निर्दोष व सर्वश्न
होता ' _
पद्मचरितके आधारपर रामचरित हिन्दी भाषामें आज
पाया जाता है । जेन समाजमे पदूम-पुराणएका बहुत वड़ा आदर
दै । बह प्रकाशित हो चुका है अतः आबाल दृद्ध वनिता उसका
स्वाध्यांयकर श्रीरामके व सीताके पवित्र जीवनस शक्ता प्राप्त
करते हैं। फिर भी एक कमी थी और वह यह कि हिन्दी भापामे
कविता-मय कोई रामचरित जैन रामायणके आधार पर नहीं
था जिसे लोग सुन्द्रताके साथ गायन बादनके साथ पट न-पाठन
कर मनोरंजन करते और सुन्दर आदर्श चरित्रको तथा उनकी
नीतियों को हृ्यद्भम करते।
जिस प्रकार तुलसी-रासायण का घर-घरमे पाठ होता है
वेसा जेन गृहस्ंको कान्यमय रामायणुके अभावसे तद्र प
स्वाध्याय. करनेकी सुनिधा श्राप्त नहीं थी। यह एक कमी
थी जो लोगोंको समय समय पर खठकती थी पर जैन कवियों
का इस ओर ध्यान नहीं था । प्राचीन सम्यके जेन कवियोनि
अनेक भरन्थेके अनुवाद कर भाषाकाव्योंका निर्माण किया है 1
हजारो पय-स्तुतिया-पृजाये-जीवन कथाएं कान्यके रूपमे
निर्मितकर अपनी कवित्व शक्तिको सफल किया है | यद्यपि
वर्तमान समय में भी अनेक जेन कवि है तथापि उनका ध्यान
User Reviews
No Reviews | Add Yours...