साहिर लुधियानवी | Sahir Ludhianvi

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Sahir Ludhianvi by प्रकाश पंडित - Prakash pandit

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बम मा के पास ने रहने देगा इसलिए ममता मी मारी मा ने रक्षय विस्म वे ऐसे लोग साहिर पर तैनात वर दिए जो क्षण- भर वो भी उसे अकेला न छाडते थे । इस तरह घणा भाव वे साथ साथ उसके सन में एवं विचित्र प्रकार को भय भी पनपता रहा । परिणामस्वरूप उसम विभि न सानसिव उलभनें पंदा हो गद। उसने प्रेम विया और निधनता साहस के अभाव और सामा- जिंक वघनो के कारण विफल रहा और इसी कारण स कालेज से नी निकाल दिया गया और फिर इच्छा और रव भाव के प्रति- शून उस अपना और अपनी माजी का पेट पालने के लिए तरह तरह कौ छोटी मोटी नौवरिया बरनी पड़ी । सिसक सिसव ौर सुलग सुलगवर उसने दिनो की धक्के दिए । कदम-इंदम पर हप और विधाद मे सघप हुआ । यह सघप बुद्धि थौर भाटुस्ता म भी हुआ गौर जीवन और मत्यु मे भी और महीं दे खघपे था जिसने उसे एक साधारण विद्यार्थी से एकटम नटिर बना दिया गौर उसके मन मस्तिष्क की सारी तत्खिया दा पेंडिरेसिदास पहनकर बाहर निवल पड़ी । दायर की हैसियत से साहिर न उस सनय पास सरेसी जद इकवाल जौर जोश के वाद फिराक दा गाज दाटि के सग्मों से न केवल लोग परिचित हा लड़ से ढस्ति रपयरी के मेदान में इनकी तूती बोलती दी 1 सन गान के फाटिर है वाई भी नया चायर अपने इन सिटट्स्ट सालों से प्रदोविस हुए विना नही रह सकता था 1 बट लिए पर ज् मगड़ बौर फ्ज का खासा प्रमाद पा ॥ उच्च इच्प्टाथ सता साया सा उसवी शायरी पर फड के बेटबग का स्ले बुरी नसों १ न भर न सा नाजुक स्वर बह्टी सो जी सन टसन्टाय पोग बडी नस मे दूवा हुआ बादादराा ॥ सेफित उपके बप्तियन यटरर जा गाए उस बय के पति द्ापतटा दिदेडुडी अा हजमथा च र




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