विशुद्धि मार्ग भाग 1 | Vishudhi Marg Bhag 1
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
430
श्रेणी :
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No Information available about त्रिपिटकाचार्य भिक्षु - Tripitkacharya Bhikshu
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( १ )
ञुदन्तसेदक शब्द से चुद्धघोष के उत्तर भारतीय नहीं होने का सन््देह करना समुचित नहीं, क्योंकि
यह स्पष्ट नहीं है और दीघनिकाय, मज्झिम निकाय, संयुक्त निकाय, अंगुत्तर निकाय, खुदक निकाय
आदि अन्थों की किसी भी अद्वकथा में यह शब्द उपलब्ध नहीं है।
बुद्धघोष ने मल्मिस निकाय की अहुकथा में लिखा हैः---
आयाचितो सुमतिना थेरेन भदन्त बुद्धमित्तेन।
पुच्चे मयूरसुत्तपइनम्हि सद्धि घसन््तेन॥
परवादिवादविद्धंसनस्सल मज्िमनिकायसेट्टस्स 1
यमहं.. पपथ्चसूदनियट्ुकर्थं. कातुमारद्धो ॥”
इससे प्रकट होता है कि बुद्धघोप लंका जाने से पूर्व मयूरसुत्त वन्द्रणाह ঘহ অন্ন
बुद्धमित्र के साथ कुछ दिन रहे थे और उनकी प्रार्थना पर ही उन्होंने मज्झिस निकाय, की
अह्कथा लिखी।
अंगुत्तर निकाय की अहृकथा से प्रगढ हे कि पहले चुद्धघोष कान्जीवरम् मे भदन्त
ज्योतिपाल के साथ रहे थे और उन्हीं की प्रार्थना पर उन्होंने मनोरथपूरणी को लिखा ।
“आयाचितो छुमतिना थेरेन भदन्त जोतिपालेन।
कश्चीपुरादिस भया पुच्वे सद्धि घसन्तेन॥
चर तब्बपण्णिदीपे मद्यविद्ारम्दि वसनकालछेपि।
वाताहते विय डुमे पलुज्जमानम्हि सद्धस्मे ॥
पारं पिठकत्तयसागरस्स गन्त्वा टितेन सुच्वतिना ।
परिखुद्धाजीवेनाभियाचितो जीवकेनापि ॥
धम्मकथानयनिपुणेद्दधि धम्मकथिकेद्दि अपरिमाणेहदि ।
परिकीलत्ठितरुस पटिपज्जितस्स सकसम्रयचित्रस्स ॥
अदुकर्थ अंगत्तर निक्रायस्स कालुमास्दधो ।
यमहं चिस्फारट्टितिमिच्छन्तो सासनवरस्स ॥%
ऐसा जान पढता है कि बुद्धो बुद्धगया से प्रस्थान कर दक्षिण भारत द्वोते हुए लंका गए
थै भौर मामं मे अनेक विहारे मे उन्होने निवास किया था तथा अपने छंका जने का उद्देश्य भी
वहाँ के भिक्षुओ से क्य था ! उन भिश्चुलों ने उनके उद्देश्य को जानकर उनकी प्रशंसा की थी और
अहकथाओं को लिखने की भी प्रार्थना की थी। चुद्धघोष ने फाक्षीवरम् , मयूरसुत्त वन्द्रगाह के
विहार जादि में कुछ दिन व्यतीत किया था । थहीं पर उन्हें भिक्ठ चुद्धमिन्न तथा भदुन््त ज्योति-
पाल से लंका जाने से पूर्व ही भेंट हुई थी।
आचार्य-परम्परा भौर रुका का इतिहास भी इसी वात की पुष्टि करता है। बुद्धधौसुष्पत्ति
नामक गन्थ में लिखा है---पुव्धाचरियान सन्तिका यथापरियज्ि पब्शाय” अर्थात् पूर्वा के आचायों
के पास पर्य्याप्ति-्धर्म को भली प्रकार जानकर इस अन्ध को लिखा गया है। तात्पर्य, जितने भी
ऐतिहासिक अथवा परम्परागत सूत्र हैं, सभी छुद्धघोष को उत्तर भारतीय ही मानते है।
वर्मा के आचार्यो का कथन ह कि बुद्धघोप सिंहली अह्कथाओं को लिखने के पश्चात् धर्म-
प्रचारार्थ वर्मा गये और धहाँ बहुत दिनों तक रहे । किन्तु, इस वात का उल्लेख किसी इतिहास-
अन्ध में नही मिलता और न तो जनश्रुति के अतिरिक्त दूसरा ही कोई प्रमाण इस सम्बन्ध में भाप
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