जैन बौद्ध तत्वज्ञान भाग 2 | Jain Boudh Tatvagyan Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৫৭] ` दृसशं भाग) जायवो यकेन जानता है कि कैसे उत्पन्न हुभा है तथा यदि वर्तमानम इन छ विषरयोक्रा मरू नहीं है तो वह भाग।मी किन२ कारणोंसे पेंद्ा होता है उनको भी जानता है तथा जो उसने मरु है वह केसे दूर हो इमको भी जानता है तथा नाश हुआ राग द्वेप फिर न पैदा द्षो उसके लिये क्या सम्दारु रखनी इसे मी जानता है । यह स्मृति इन्द्रिय घौर मनके जीतनेके स्थि बडी ही भावदयक ই। निमित्तोंकोी बचानेसे ही इन्द्रिय सम्बन्धी राग हट सक्ता है। यदि हम नारफ, खेर, तमाशा देखगे, शगार पृणे ज्ञान सुनेंगे, जत्तर फुलेल सूंघंगे, स्वादिष्ट भोजन रागयुक्त होकर ग्रहण करेंगे, मनोहर वच्तुओंकी स्पशे करेंगे, पूपेरत भोगोंकों मनमें स्मरण करेंगे व आगामी भोगोंकी वांछा कगे तव इन्द्रिय विषय सम्बन्धी राग देष दूर नद्यं होतः । यदि विषय राग उन्न हेजवि तो उसे मल लानकर उसके दूर करनेके लिये जात्मतत्वका विचार करे | आगामी फिर न पैदा हो इसके लिये सदा ही ध्यान, स्वाध्याय, व तत्व मन- नें व सत्संगतिर्में व एकांत सेवनमें रुगा रहे। जिसको आत्मानन्दकी गाढ रुचि होगी वह इन्द्रिय वचनं सम्बन्धी मलोंसे अपनेको बचा सकेगा । ध्यानीको स्री पुरुष नपुंत्क रद्दित एकांत स्थानके सेवनकी इसीलिये जावश्यक्ता बताई है कि दरन्द्रियोंके विषय सम्बन्धी मऊ न पेदा हों । तत्वानुशासनम कहा हं-- त्य मारे गुद्दायां वा दिया या यदि वा निशि। स्रीपशुक्कीष नीवानां क्षुर ण मप्यगोचरे | ९० ॥ `




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