ब्रह्मचर्य की महिमा | Barhamchary Ki Mahima

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ ब्रह्ययय की महिमा रोधं प्रभो ! संदरसंदरेति। यावद्‌ गिरा रै महतां चरन्ति} तावरघवहिमवनेत्र-जन्या | भसावकेपं मदमश्वक्ार ॥ अर्थात्‌ है प्रभों | अपने क्रोध को शान्त कीजिये, शान्त फीजिये । ये शब्द आकाश में गूजते ही थे कि शिवजीके उप नेत्रसे उसन्न আয়ন फामदेवको जलाकर मदम फर दिया । चे घोर दाहकर मच गया | दूसरे अ्रद्मचारीका नाम है शुक्राचाय | दानव-गुर झुक्राचार्यने वीये-्ञाफे लिए धहुतसे उपाय बतलाये हैं। एक बार उनके उपदेशोंसे असुर लोग बढ़े बलवान हो गये थे। यहाँ तक देवता लोग उनसे उरमे छगे। शुक्राचायके पास संजीवनी! नामकी एक विद्या थी, जिससे यह भृतको भी जिला देते थे। इसलिए देव- तानि शपते कव नामक एक व्यक्तिको उनके पास यह अमोष ज्ञान प्राप्त करनेफे लिए भेजा। घुकाचायकी कृपासे वह विद्या मिल गयी । वह संजीवनी विद्या यही वीय-रचाकी विद्या थी। इस्ीके नियमपर चढनेतते छोग अमर हो जाते थे। इसीके प्रतापे भीषम जीमें इच्छा मृत्यु की शक्ति थी। वीय-रत्षा ही संजीवनी है, इसके सम्पन्धमें लिखा भी ই:-- “होपा संजीवनी विया संजीवयति मानवम्‌ । सूक्ति |




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