जब खेत जागे | Jab Khait Jage

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Jab Khait Jage by कृष्णचन्द्र - Krishnchandr

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बातों नें यदि वीरैया के अपने बच्चे की माँ, उसका स्कूल और उसका साथी बना दिया ता इसमें किस का क़सूर हे। राव ने इस सिक्के के उलट पलट कर देखा जिस पर उस के पिता की तसवीर थी । वीरैया का शरीर गठा हुआ था, उसका सिर मुंडा हुआ था उसकी आखें छोटी छोटी थीं और उसके पैर ननगे काले और मज़बूत थे । उसके पेरों के जूतों की आवश्यकता न थी। बड़े हो कर राघव राव के पर भी ऐसे ही हा गए थे। राघव राव ने अपने पैरों की ओर देखना चाहा परन्तु वे डण्डा बेडी कक म जकड़े हुए थे- वह धीरे से मुस्कराया । वीरेया नें राघव राव के कठोर और कष्ट सहने वाला बना दिया था क्यों कि वह उसका पालन पाषण एक माँ की भांति न कर सकता था। वेसे एक खेती में काम करने वाली माँ भी अपने बालक के माँ की भांति नहीं पाल सकती । और वीरैया के तो जीवन में सुबह से शाम तक परिश्रम ही परिश्रम करना पड़ता था क्यों कि उसकी अपनी भूमि नहीं थी। भूमि जमीदार की थी और वे लोग ज़मीदार के खेत के मजूर थे, उसके विट्री थे, उसके ग्वाले थे उसके घाड़े थे और समय पड़ने पर उसके मुरगं भी थे और अपनी बहू बेटियों के दलाल भी थे । जब एक मनुष्य को अपना जीवन बिताने के लिये इतना कुछ २१




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