अनदेखे पुल | Andekhe Pul

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Andekhe Pul by से. रा. यात्री - Se. Ra. Yatri

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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उसने इस बार कं वाद वाक्य पूरा नहीं किया था। उसकी पूर्ति 'में कछ करके ही जाऊमी । अथवा 'इस बार मैं यह देखने आई हू कि आप अकेले किस प्रकार रहते है” कितने ही वाक्यो और अर्थो मे हो सकती थी। मैने कहा-''मै न यहां अकेला रहता हूं न परिवार विहीन हूं ।” “आंब! ऐसा? लेकिन आपके मित्र ने तो हमे यही बताया था कि आपने अभी तक परिवार बनाया ही नहीं है। कुछेक क्षण ठहरकर उसने संज्ञात्मक लहजे से पूछा-“वह कहां गई है आपकी. ..?” मैं ठठाकर हस पडा और बोला-“क्या आप मुझे अंदर आने की इजाजत देंगी? मैं आपको आराम से सब कुछ बतला दूंगा।” उसने जीभ काटते हुए कहा-“अरे यह तो मुझसे घोर अनर्थ हो गया। घर का स्वामी दहलीज के बाहर खड़ा सूख रहा है और मै मजे मे गप्पे मारते हुए उसे अटकाए हुए हूं।” और यह कहकर वह दरवाजे से एक ओर हटकर खडी हो गई। मैं दरवाजा पार करके सहन में आया तो मैने जोखन को रसोई से बाहर निकलते हुए देखा | उसके कधे पर जो लाल रग का अगीछा पड़ा था उससे वह हाथ पोछते हुए सहन के उधर खड़ा रहा। गमछे से हाथ पोंछले हुए जोखन जिस तरह रसोई से बाहर निकला था उससे यह स्पष्ट हो गया कि वह इस समय रात के खाने के सरजाम में लगा हुआ প্রা! मै आगे बढकर कमरे के द्वार पर पहुचा तो सब्जियों के छौंक को मसालों की गध मेरे नथुनो में आने लगी। इससे मुझे आभास हुआ कि उर्मिता को आए हुए अभी अधिक समय नही हुआ था। मैंने अपने कमरे में घुसते हुए उर्मिला से पूछा-“क्या आप अकेली ही आई है?! लेकिन भीतर कमरे का दृश्य देखकर यह बात साफ हो गई कि उर्मिला अकेली नहीं आई थी। एक हालडाल, अटैची और लोहा का वक्सा कोने कौ अलमारी के पास रखा था और प्लास्टिक की टोकरी मेरी मेज पर रखी थी। जिसमे बेतरतीब ढंग से बहुत सा सामान ठुंसा पड़ा था। मैने पूछा-“क्या आपकी गाडी यहां काफी विलब से पहुंची?” वह सफाई-सी देते हुए बोली-“दरअसल आपसे मिलने की बात तो सोचकर चली थी मगर आज नही कभी बाद मे मिलती। वह तो गाडी इतनी लेट हो যা, जनदेखे पुल / 1.




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