श्री रत्नकरंड श्रावकाचार | Shri Ratnakarand Shravkachar
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
23 MB
कुल पष्ठ :
802
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गम्भीर पर संक्षिप्त चर्चा की गई है इसीसे आपको “आशरतुति-
कार? जेसे शब्दोंके द्वारा उल्लेखित किया गया है 1
प्रसिद्ध ऐतिद्वासिक विद्वान् प॑० जुगलकिशोरजी मुख्तारको जो
आपका एक परिचयपद्च मिला था'। और जिसमें अन्यविशेषयों
के साथ आपको 'सिद्ध सारस्वत”ः और “आज्नासिद्ध/ तक बत-
ल्ञाया गया है अर्थात् आपको सरस्वतीका अनुपम वरदाव मिला
हुआ था, और उनकी आज्ञा सवेत्र मानी जाती थी। जिनसे
स्पष्ट मालूम होता है कि राप उससभयके महान् योगी ये, इसोसे
एक शिक्ञावाक्यमें तो आपके द्वारा मद्दावीर शासनकी दृजारशुणी
यूद्धि होना तक सूचित किया है। आपकी महत्ता, तपस्वी जीवन
ऋटूट श्रद्धा ये सब आपके असाधारण व्यत्तित्वके परिचायक
हे । आपमें आगत आपतस्तियों उपसर्गों अथवा परिपहोंके सहल
फरनेकी अपने सामथ्य थी। और था हृदयमें वह स्व-परकां
अद्भुत विचेक, जो अभद्गरता अथवा मिथ्यात्वका शत्र है ओर
स्वालुभवकी अन्तरज्योतिसे उदीपित है ।
आचाय समन्तभद्रने जेनशासनकी जो अपर सेवा की है और
आपकी अनेक अनठी फ्तियोंसे उसके साहित्यको अलंकृत किया
है। यद्यपि खेदहै कि हम आपकी सभी कृतियोंका संरक्षण नहीं कर
सके, पर जो संरक्षित हैं उनकाभी हम लोकमें प्रचार एवं प्रसार
फरनेमें असम रहे है, वे कृतियां महान् सूत्रात्मक और गम्भीर
अर्थके रहस्यसे ओत-प्रोत हैं। और वे दाशेनिक जगतमें, अपनी
$ देखो, अनेकान्त प्ष ७ अ'क, ३-४
७
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