भीष्म | Bhishm

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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दशय | पहला अंक ९ পাপা ~~~ ~~~ ~~~ ^~ ^~ ~^. ~-^~^^~^~~~^~^~ ^ २ धौवर--यहं सदेह दूर कंसे हो £ १. धीवर-- दूर हेते तो नदी देख पडता | २ धीवर--अच्छा, इसी आदमीसे पृष्ठा जाय तो केसा ए १ धीवर--( चिन्तित भावसे ) हॉ--यह तो कुछ ठीक जानं पडता है । _ धीवर---तो चलो पूछे । ( दोनों शान्तनुके पास जाते ই) १ धीवर--एजी । एजी । २ धीवर---ओ भले आदमी ! १ धीवर---बोछता भी नहीं है ! २ धीवर--तो फिर मर ही गया होगा ! १ धीवर--तो यही क्यो नदी कह देता कि में मर गया हूँ। हम निश्चिन्‍्त होकर अपने घर चले जायें । धीवर---ना, गड़बडझाला जैसेका तैसा बना रह। चलो घर चरे | ( दोनोंका प्रस्थान ) शान्तनु--बरसातकी बढ़ी हुईं नदी अपने दोनो किनारोंको छापकर वेगसे बही जा रही है । शरद्‌ ऋतुका पूर्ण चन्द्रमा उदय हो आया . है । कोकाबेलीके उज्ज्वल फ़ूछ खिल रहे है। कोई त्रुटि नही है, कोई कमी नही है। स्वर्गकी-सी इस सुन्दर ज्योतिमे वह सुन्दरी कौन थी ? किसकी कन्या थी ? उसका घर कहाँ है इधर ही तो शायद गई हे | इसके रहनेकी जगहका पता मुझे कौन वतवेगा [ माघवका प्रवेश ] माधव--मित्र, मृग भाग गया | शान्तनु--माग जाने दो | छेकिन मैने एक अपूर्व छुन्द्री नारी देखी है| वि.स. २




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