अज्ञेय का काव्य तितीर्षा | Agyey Ka Kavya Titeersha

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Agyey Ka Kavya Titeersha by नन्दकिशोर आचार्य - Nandkishore Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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या विरोध से न होकर यही है कि उसका स्वरूप वेयक्तिक नहीं रहता अत. वैयक्तिक प्रतिक्रिया भी वहाँ नही रहती । इसके लिए कलाकार की प्रतिक्रिया और बैयक्तिक प्रतिक्रिया का अन्तर जानना भी आवश्यक है । वस्तुत. जीवनानुभव को कलानुभव में परिवर्तित करना हीं साधारणीकरण हैे--ईलियट की शब्दावली मे कहे तो निर्वेवक्तिक अभिव्यक्ति है। सजेता कलांकर की प्रतिभा इस कलानुभव की रचना मे ही प्रकट होती है । इसका तात्पयं यह नही है कि कला का जीवनानुभव से कोई सवध नही है। अनेय कहते है . “साधारण का साधारण वर्णन कविता नहीं है। कविता तभी होती हैं जब साधारण पहले निजी होता है और फिर व्यवित में से छत्कर साधारण होता है । जो इसको भूलते है, उनके पद्य परम सीदेश्यपुणं होकर भी कविता नही वन सकते, और चाहे जो कुछ हो जाए ।/” इस प्रकार कला- नुभव की प्रथम आवश्यकता ही जीवनानुभव है। लेकिन जीवन के किसी भी विशिष्ट अनुभव को तब तक कलात्मक स्तर पर प्रस्तुत नही किया जा सकता जब तक उसे पूरी तरह समझ ते लिया जाए-और उसे समझसे के लिए उसके प्रति तटस्थ होना आवश्यक है। इस प्रकार व्यक्ति के रूप में प्राप्त अनुभव को कल त्मिक सर्जन के स्तर पर प्रस्तुतकरने के लिए जीवना- सुभव के प्रति व्यक्तिगत प्रतिक्रिया से तटस्थ होना अनिवार्य स्थिति है । और जब जीवनानुभव का रूपान्तरण कलानुभव में हो जाता है तो वह स्वाभा- विक ही 'निर्वेवक्तिक' हो जाता है--चाहे जीवनानुभव के रूप में वह कितना भी वैयक्तिक र्हा हो 1 इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि यदि अनेय ईसियट आदि पश्चिमी चिन्तकों से प्रभावित हुए भी तो वे वहाँ से अपनी परम्परा को आधुनिक दृष्टि से व्या्यायित एवं रूपायित करने मे सहायता प्राप्त कर सके। वस्तुत. 'त्रिशकु' तो इस दिशा मे उनका आऑरम्भिक प्रयास मात्र हे। यही कारण है कि दृष्टि के विकास एवं परिष्कार के साथ-साथ वे अपनी परम्परा के अधिक समीप होते गए है और निश्चय ही सर्जनात्मक दृष्टि- कोण से अनेक रसवादी आलोचको की अपेक्षा उन्होने इस दिशा मे अधिक मौलिक एवं सराहनीय कार्य किया है। १ आत्मनेपद, प० ४६ अनेय फी काव्य-तितीर्पा १५ # 1




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