समाज और जीवन | Samaj Aur Jeevan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
131
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)सुख और शान्ति ३
आदमी के मन-ल्गती कही पर दस्मे रेवा कोदं बीन न मिखा जिसे बोकर्
आदमी सुख-फल की खेती आसानी से काट केता है ।
‹ आनन्द ` ओर वेदना :
कुछ ऋषियोंने बडी ऊँची उडान ली और उन्होंने एक नये शब्द
* आनन्द” की र्वना कर डाली | इस शब्द की तेज धारसे उन्होंने अनु-
कूल और प्रतिकूल दोनों वेदनाओं का ही सर काट कर फेंक दिया। यानी
सुल-दुःख दोनों को ही बेकार साबित कर दिया या निरी दुनियादारी की
चीज बना कर छोड दिया। अगर आनन्द शब्द का उल्था किया जाय
तो बह होगा आत्म-वेदना और घरेलू बोली में घदह्दी होगा अपनी जानकारी ।
तो अन्र आनन्द रह मया आरमानद यानी अपने आप अपने अपि मे मगन
रहना । और अगर वेदना शब्द् से आप विपके ही रहना चाहते हैं तो
आनन्द के माने हो जाते हैं अपने आप को जानते रहना और मगन
रहना । वास्तव भ बात तो यह बढी गरी ह ओर बडे बडे तकै-शालिये
का मुँह बट कर सकती है, पर है कोरी कल्पना । हो सकता है बिल्कुल
सच्ची दो | पर् जरह कहीं वह सच्ची मिलेगी वहाँ न हम होंगे न तुम
और न यह दुनिया होगी । तब फिर ऐसी सचाई से इमें क्या लेना-देना।
सुख-शांति की खोज :
आइये, अब आसमान से फिर भूतल पर आ जाइये और अपनी
सुल-शान्ति से भेट कीजिय । भला-बुरा जेसा भी सुख इस दुनिया में है
और भली-बुरी जेसी भी शान्ति यहाँ मिलती है उसीसे हमें काम पड़ेगा
और उसीको पाकर इर्मे तसल्ली होगी और चैन पडेगा । फिर उसी की बात
क्यों न करे ! आइये, अब उसी की खोज करें और पता लगाए कि वह
कह रहती है और कहाँ अपने आप आ जाती है ? और क्यों अपने आप
चली जाती दै? वह् सिनेमा के फ़िल्म के चित्रों की तरह निरी छाया ही
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