समाज और जीवन | Samaj Aur Jeevan

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Samaj Aur Jeevan  by जमनालाल जैन - Jamnalal Jain

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुख और शान्ति ३ आदमी के मन-ल्गती कही पर दस्मे रेवा कोदं बीन न मिखा जिसे बोकर्‌ आदमी सुख-फल की खेती आसानी से काट केता है । ‹ आनन्द ` ओर वेदना : कुछ ऋषियोंने बडी ऊँची उडान ली और उन्होंने एक नये शब्द * आनन्द” की र्वना कर डाली | इस शब्द की तेज धारसे उन्होंने अनु- कूल और प्रतिकूल दोनों वेदनाओं का ही सर काट कर फेंक दिया। यानी सुल-दुःख दोनों को ही बेकार साबित कर दिया या निरी दुनियादारी की चीज बना कर छोड दिया। अगर आनन्द शब्द का उल्था किया जाय तो बह होगा आत्म-वेदना और घरेलू बोली में घदह्दी होगा अपनी जानकारी । तो अन्र आनन्द रह मया आरमानद यानी अपने आप अपने अपि मे मगन रहना । और अगर वेदना शब्द्‌ से आप विपके ही रहना चाहते हैं तो आनन्द के माने हो जाते हैं अपने आप को जानते रहना और मगन रहना । वास्तव भ बात तो यह बढी गरी ह ओर बडे बडे तकै-शालिये का मुँह बट कर सकती है, पर है कोरी कल्पना । हो सकता है बिल्कुल सच्ची दो | पर्‌ जरह कहीं वह सच्ची मिलेगी वहाँ न हम होंगे न तुम और न यह दुनिया होगी । तब फिर ऐसी सचाई से इमें क्या लेना-देना। सुख-शांति की खोज : आइये, अब आसमान से फिर भूतल पर आ जाइये और अपनी सुल-शान्ति से भेट कीजिय । भला-बुरा जेसा भी सुख इस दुनिया में है और भली-बुरी जेसी भी शान्ति यहाँ मिलती है उसीसे हमें काम पड़ेगा और उसीको पाकर इर्मे तसल्ली होगी और चैन पडेगा । फिर उसी की बात क्‍यों न करे ! आइये, अब उसी की खोज करें और पता लगाए कि वह कह रहती है और कहाँ अपने आप आ जाती है ? और क्‍यों अपने आप चली जाती दै? वह्‌ सिनेमा के फ़िल्म के चित्रों की तरह निरी छाया ही




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