प्रबंध - पद्म | Prabandha Padam

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिंदु या शूर्य सब शास्त्रों में सब तरफ़ सब्र समय स्वयंसिद्ध है | उद्धव स्थिति श्र प्रलयं का शर्य ही मूल-रहस्य है । केवल शक्ति संसार को शून्य से अलग किए हुए है दूसरे तरीक्ने से शूंत्य की ही व्याख्या करने में सदैव तत्पर । लोग गंखणित या गणना में पड़कर हिसाब जोड़ते संख्या ठीक करते उसकी च्रद्धि में लगे हुए शत्य को नफ़रत की निगाह से देखते हैं पर अझगल-बंगल से शूल्यों से दबी हुई उनकी संख्यां झ्ाप वृहत ज्ञान के मुकाबले श्रसिद्ध रद जाती है। गणित की संख्या की तरह संसार के जीव श्रौर तमाम भावनाएँ दोनो तरफ़ से शूत्यों से दबे हुए हैं | क . संख्या का उद्गम-स्थल है शून्य ० । इस शूत्य की दाहनी तरफ़ अगशित प्रसार तक संख्या बढ़ती है श्रौर वाइं तरफ़ श्रगणित प्रसार तक घटती है दशसिक द्वारा 9 । सौ हजार लाख करोड़ ्रादि के किसी कोठे में रह जाना गशित का सूंस-तत्व हासिल कर खेना न हुआ जब कि संख्या और बढ़ सकती है यंदही बात घटाव के संबंध मैं भी पुनः संख्या द्वारा दोनो तरफ़ के घटाव-बढ़ाव के दो उअगसित-दो शूत्य ही हुए । फिर तीन शूश्यों का समधर्म मैं एक शून्य रह जाना बिलकुल स्वाभाविक है । अतः शूत्य ही तमाम गणित का सूल श्राघार हुआ्रा । रेखागसित में भी बिंदु सब कुछ है । बिंदु छीन लें तो रेखाएँ कोण श्रादि झ्सिंद्ध रह जायेँ । यहीं बीजगखित का हाल हैं । बीज स्वयं गोलाकति शून्य है । उसकी जगंह क कीजिए _ या चर एक ही बात है । छात्र संसार की भावनाएँ लीजिए । . मावनाएँ शब्द-स्चंना




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